- पार्षदों के मोबाइल स्विच ऑफ तथा परिजन भी नहीं मुंह खोलने को तैयार
समालखा 23 जून-रिपोर्टर नज़र
भाजपा का दामन थामने के बाद फिर से पार्षद और पार्षद पति, परिजन देशाटन को निकल गए हैं। पार्षद कहां गए हैं इसके बारे में भी किसी को कोई जानकार नहीं है तथा उनके परिजन भी इस बारे में मुंह खोलने को तैयार नहीं है। वहीं देशाटन को निकले पार्षदों के मोबाइल भी स्विच ऑफ आ रहे हैं। आए दिन नए एपिसोड की पटकथा लिखी जा रही है।
उल्लेखनीय है कि विगत कई दिनों से नगरपालिका चेयरमैन की कुर्सी को लेकर उठा-पठक चल रही है। इसी कड़ी में बृहस्पतिवार को पंद्रह पार्षदों ने भाजपा का दामन विधायक रविन्द्र मच्छरौली के सम्मुख थामा था। उक्त कार्यक्रम के बाद से ही पार्षद व पार्षद पति फिर से अज्ञातवास पर चले गए हैं। इस संबंध मेंं कुछ पार्षदों से बात करने पर उनके मोबाइल बंद मिले तो परिजन भी कुछ कहने को तैयार नहीं हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पार्षद मंगलवार को वापिस लौट सकते हैं। पार्षदों के एक बार फिर अज्ञातवास पर जाने का विषय फिर से लोगों में चर्चा का कारण बन गया है। जबकि वर्तमान चेयरमैन अशोक कुच्छल भी अपनी कुर्सी को बचाने को लेकर प्रयास कर रहे हैं दूसरी तरफ आरटीआई कार्यकर्ता पीपी कपूर भी पिछले कुछ दिनों से इसमें भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए मामले को जोरशोर से उठा रहे हैं। उनका कहना है कि जल्द ही शहर की जनता को लाम्बंद कर आन्दोलन किया जाएगा। नपा के ड्रामे को लेकर अन्य राजनीतिक दल भी पल-पल के घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं।
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देशप्रेमी व मानवता के उपासक थे डा० मुखर्जी- राजकुमार कालीरामना
- डा० श्यामाप्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर भाजपा ने दी श्रद्धांजली
समालखा 23 जून-रिपोर्टर नज़र
जनसंघ के संस्थापक डा० श्यामप्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर भाजपा नेता राजकुमार कालीरामना ने अपने कार्यालय पर पार्टी कार्यकर्ताओं सहित उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित करते हुए श्रद्धांजली अर्पित की। उन्होंने कहा कि डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। वे सच्चे अर्थों में देशप्रेमी, मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। परन्तु उनके इन विचारों को अन्य राजनीतिक दलों नेे अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। कालीरामना ने कहा कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर में 370 हटाने के लिए आंदोलन किया। उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नजऱबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। हमें उनके विचारों और दिखाए मार्ग पर चलते हुए उनके सपनों को साकार करने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही देशप्रेम की भावना रखते हुए जन सेवा करनी चाहिए। इस अवसर पर काफी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित थे।
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