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Tuesday, 13 June 2017

प्रशासन के लिए बाल श्रम रोकना बड़ी चुनौती

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विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर विशेष प्रशासन के लिए बाल श्रम रोकना बड़ी चुनौती




विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर विशेष 
प्रशासन के लिए बाल श्रम रोकना बड़ी चुनौती 

विश्व बालश्रम निषेध दिवस आज सारी दुनिया में मनाया जा रहा है मगर नूंह प्रशासन ने देश की इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए अपने यहां कोई कदम नहीं उठाए।
जहां हमारे देश में बच्चों को भगवान का दर्जा दिया जाता है वहां कम उम्र के बच्चों से मजदूरी कराना और भीख मंगवाए जाने से रोकना सरकार के लिए एक चुनौती पेश कर रहा है। कानून की पालना कराने वाले अधिकारी भी इस मामले में चुप्पी साधकर तमाशा देख रहे हैं। जिस उम्र में बच्चों को स्कूल जाना चाहिए, उस समय वह ईंट भ_ों, ढाबों और मैकेनिकों के पास अपने हाथ काले कर रहे हैं।
इन बच्चों के अधिकारों की कानून ने तो व्यवस्था की मगर इनके अभिभावकों और समाज के चंद लोगों ने अपनी जमीर को मारकर कमाई के चक्कर में एक बड़ा अपराध खुद से करा लिया। ऐसे बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास को अब बाल श्रम प्रभावित कर रहा है लेकिन सब मौन हैं। चूंकि नूंह में तालीम का स्तर बहुत नीचा है। आर्थिक तौर पर कमजोर यह इलाका अभी प्रगति की दौड़ में अन्य जिलों से काफी पीछे है। करीब तेरह लाख आबादी वाले इस जिले में सात लाख से अधिक अठारह साल से कम उम्र के बच्चे हैं।
 
इनमें से यदि बाल मजदूरों का आंकड़ा निकाला जाए तो यह भी लाखों में निकलकर आता है। भारत में साल 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम लागू हुआ, जिसमें बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति गठित हुई। इस समिति की सिफारिश के अनुसार खतरनाक श्रेणी के उद्योगों में बच्चों को काम पर लगाना निषेध है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के तहत शोषण और अन्याय के विरुद्ध 23 और 24 का प्रावधान है। अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों से काम कराने पर पाबंदी लगाता है। जबकि अनुच्छेक 24 के तहत 14 साल के कम उम्र का बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम पर नहीं लगाा जा सकता।
 
फैक्टरी कानून 1948 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का नियोजन करना निषेध है।
उधर 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में उस सूरत में नियुक्त किए जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो।
इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय है। इनसे रात में काम नहीं लिया जा सकता। कानून सख्त हैं मगर उनका पालना सख्ती से नहीं हो रहा। आज भारत में सबसे अधिक बाल मजदूर हैं। एक अनुमान के अनुसार विश्व के बाल श्रमिकों का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा भारत में हैं।
 
एक अनुमान के अनुसार भारत के 50 प्रतिशत बच्चे अपने बचपन के अधिकारों से वंचित हैं। न उनके पास शिक्षा की ज्योति पहुँच पा रही है और न ही उचित पोषण। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 2 करोड़ बाल मजदूर हैं जबकि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 5 करोड़ बच्चे बाल मजदूर हैं। बाल मजदूरों से लगातार काम कराना, कम वेतन देना तथा इनके साथ मारपीट करना आम बात है लेकिन सब मौन हैं। मौजूदा वकत बच्चों को पटाखे बनाना, कालीन बुनना, वेल्डिंग करना, ताले बनाना, पीतल उद्योग में काम करना, कांच उद्योग, हीरा उद्योग, माचिस, बीड़ी बनाना, कोयले की खानों में, पत्थर खदानों में, सीमेंट उद्योग, दवा उद्योग में खतरनाक काम कराया जाता है। 
बच्चों का यौन शोषण भी आम शिकायतें हैं। हरियाणा में बाल मजदूरों के अधिकारों को लेकर प्रतिष्ठान मालिकों एवं समाज के अन्य लोगों को जागरुक करने के लिए जिला बाल संरक्षण समिति और जिला बाल कल्याण परिषद समय-समय पर मुहिम चलाती है। कुछ सामाजिक संस्थाएं भी ऐसे लोगों की जानकारी पुलिस को देती हैं मगर अभी तक प्रयास नाकाफी हैं। मेवात में ईंट भटठों पर बांगलादेशी और बर्मा से आए प्रवासी मजदूरों के साथ उनके बच्चे भी बाल श्रम में जुटे हैं मगर भ_ा मालिकों और जिला खाद्य एवं आपूत्र्ति विभाग के अधिकारियों को इसकी कोई परवाह नहीं। इनके लिए जीवन की मूलभूत सुविधाएं तक मुहैया नहीं कराई जा रही। इसके अलावा आर्थिक रूप से विपन्नता झेल रहे परिवारों के छोटी उम्र के बच्चे जो कि किसी वजह से स्कूल नहीं जा रहे, उनके पुनर्वास के लिए भी अभी तक नूंह जिला प्रशासन और बाल कल्याण विभाग या किसी एनजीओ ने कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाए हैं। सवाल यह है कि आखिर बाल श्रम कराने वाले लोगों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं हो पाती ? 

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