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Sunday, 18 June 2017

बाबा रामनाथ का 41 दिवसीय पंच धुन्नी तप संपन्न


6 साल में 12 बार कर चुके है पंच धुन्नी और जलधारा तप
राजा कर्ण की नगरी में त्रिवेणी के नीचे बैठ कर की तपस्या
करनाल, 18 जून :
 देश-विदेश में प्रसिद्ध अस्तल बोहर गद्दी के जुड़े बाबा रामनाथ का पंच धुन्नी कठोर तप विशेष मंत्रोच्चारण के साथ संपन्न हो गया। यह तप दानवीर राजा कर्ण के शहर करनाल में जयेष्ठ-अषाढ़ की तपती गर्मी के बीच निरंतर 41 दिन तक किया गया। विश्व कल्याण और शांति के लिये बाबा रामनाथ पिछले करीब छह वर्ष के दौरान छह पंचाग्रिी तप और छह जलधारा तप कर चुके है। तपस्या संपन्न होने के पूर्व बाबा और उनके सहयोगियों की ओर से अटूट भंडारा बरता गया। पिछले छह वर्षो में बाबा रामनाथ देश के कई हिस्सों में पूरी सृष्टि एवं ब्रहांड की सलामती के लिये तप कर चुके है। 

पंाच अग्रि धुन्नों के बीच किया बाबा ने तप : वर्ष 2017 में दानवीर राजा कर्ण की नगरी करनाल में भी बाबा रामनाथ के चरण पड़े। वह करनाल के रास्ते गुजर रहे थे, तो सेक्टर छह सांई मंदिर से नूरमहल चौक को जाने वाले मार्ग की ग्रीन बेल्ट में त्रिवेणी देखी तो बाबा ने अपना डेरा वहीं जमा दिया। बाबा और उनके सहयोगी संतों और लोगों ने पंचाग्रि तप के लिए व्यवस्था बना दी। ठीक 41 दिन पूर्व बाबा ने चार-चार फुट से भी कम दूरी में अपने चारों ओर उपलों के पांच बड़े-बड़े ढेर लगवा दिए और उनकी अग्रिी के बीच अपनी तपस्या प्रारंभ कर दी। बाबा रोजाना दिन में ठीक 12 बजे से सवा दो बजे तक गगन चुंभी आग की लपटों के बीच बैठ कर घोर तपस्या करते। 


बाबा की कठोर तपस्या के समक्ष लोग रहे दंग :  रोजाना राह चलते लोग बाबा की तपस्या देख कर दंग रह जाते। धीरे-धीरे समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता चला गया और रविवार को बाबा की तपस्या के 41 दिन संपन्न हो गये।  तपस्या से बाहर आने के बाद बाबा रामनाथ ने कहा वें बाबा धुन्नी नाथ के शिष्य है। यह तपस्या विश्व कल्याण के लिए है। जग कल्याण तो सबका कल्याण। साथ में साधु संतों का भी कल्याण हो जाये, ऐसी कुदरत से दुआ रहती है। पूछने पर उन्होंने बताया कि वह पिछले छह वर्ष से साल में दो बार विश्व कल्याण के लिये तप करते है। वें गर्मी के दिनों में जयेष्ठ अषाढ़ की तपती गर्मी में अग्रिी और सर्दी के मौसम में पौष माह में जलधारा का तप करते है। जलधारा तप में वह रोजाना पूरे 41 दिन तक 108 घडों के ठंडे जल की धारा प्रवाह अपने सिर पर ओटते है। त्रिवेणी को उन्होंने इस लिये चुना कि इसमें साधु संतों के विचार से साक्षात भगवान का रूप माना गया है। पीपल में भगवान ब्रहमा, वट-बरगद में भगवान शिव और नीम में भगवान विष्णु वास करते है। धार्मिक विचार आया और तप शुरू हो गया। तपस्या के दिनों में वह हरी शाक सब्जी और चाय लेते है। अन्न और दूध का प्रयोग वह नहीं करते। उन्होंने कहा साधु समाज के संतों में विशेष तौर पर बाबा रोशननाथ, सरदार नाथ और महेश नाथ समेत कई संतों का विशेष सहयोग रहा है। तप संपन्न होने से पूर्व रात भर जागरण कर भगवान का भजन किया गया। इस अवसर पर उनके सेवकों में शामिल रामजी, महावीर, बंसी संधू, राजपाल संधू, रविंद्र, सचिन छिक्कारा व देवेंद्र संधू समेत काफी लोगों ने धर्म लाभ कमाया।

फोटो=03
बाबा रामनाथ का 41 दिवसीय पंच धुन्नी तप सम्पन्न होने के बाद भक्तों को आशीर्वाद देते हुए एवं भंडारे में प्रसाद ग्रहण करते भक्तजन। 

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