अगर मैं ना बचा तो मेरी आंखे दान कर देना।
जानलेवा हमले में घायल हुए गांव गढ़ी छाज्जू निवासी सुरेन्द्र को शायद अपनी मृत्यु का पहले ही आभास हो गया था। इसलिए उसने अपने चाच को पास बुंलाकर कहा कि अगर मैं ना बचा तो मेरी आंखे दान कर देना। अपने भतीजे की अंतिम इच्छा को पूरी करते हुए अस्पताल में ही नेत्रदान कर दिए गए।
उल्लेखनीय है कि चार दिन पहले गांव गढ़ी छाज्जू निवासी सुरेन्द्र रात को नहरी पानी के लिए अपने खेत पर जा रहा था। पुरानी रंजिश रखते हुए गांव के ही कुछ लोगों ने उसे जानलेवा हमला करते हुए जख्मी कर दिया। जिसके बाद परिजनों ने उसे दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती करवाया था। जहां उसकी मौत हो गई। उसके चाचा सुल्तान ने रूआंसे होते हुए बताया कि सुरेन्द्र ने अस्पताल में ईलाज के दौरान उन्हें बुलाया था। उसने कहा था कि अगर मैं बच गया तो ठीक ना तो मेरी आंखे दान कर देना। जो किसी नेत्रहीन के काम आ जाएंगी। ईलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। जिसके बाद उन्होंने अस्पताल में ही उसकी अंतिम इच्छा पूरी करते हुए आंखे दान कर दी।
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