BY- PARVEEN KAUSHIK
तपती गर्मी में पैर नहीं जलते बल्कि जलता तो पेट है भूख से
तपती गर्मी में नगें पैर और भूखे पेट जी रहा बचपन लेकिन सरकार बस योजनाएं बनाने में ही व्यस्त
किसी को नहीं दिखता इन बच्चों का भूख से चिपका हुआ पेट
आजादी से अब तक गरीबी हटाओ का नारा मात्र नारा ही बना रहा
स्कूली शिक्षा से वंचित रहते हैं बच्चे लेकिन सरकार तो बस योजना बनाने में ही रहती है व्यस्त
कैथल(प्रदीप दलाल)
आग की लपटों सी गर्मी से झुलसता शरीर, आग उगलती धरती लेकिन नंगे पैर, मुरझाए चेहरे और बिखरे हुए बाल, यह है रोता सिसकता हमारा देश का भविष्य कहलाने वाला बचपन लेकिन विपरीत परिस्थितियां में भी काम करने को मजबूर बचपन, क्योंकि इस आग उगलती गर्मी से भी बड़ी गर्मी है और वह गर्मी है पेट की गर्मी। जो पल-पल इन बच्चों को खाने को आती है। जो इनके बचपन को ही कहा गई। पेट की आग के लिए देश के न जाने कितने ही बच्चे इधर-उधर भटकते दिखाई देते हैं।
मानो वह देश के विकास और तरक्की को मुँह चिढ़ा असलियत दिखा रहें हो। फटेहाल कपड़े पहने, भीखरे बाल, तपती गर्मी की दोपहरी में 2 बजे का समय पैरों में चप्पल नहीं लेकिन चहरे पर जरा भी सिकन नहीं, सोनू जिसकी उम्र लगभग 5 साल ने बड़ी मासूमियत के साथ बताया कि उसे अब तपती जमीन गर्म नहीं लगती।
मानो वह देश के विकास और तरक्की को मुँह चिढ़ा असलियत दिखा रहें हो। फटेहाल कपड़े पहने, भीखरे बाल, तपती गर्मी की दोपहरी में 2 बजे का समय पैरों में चप्पल नहीं लेकिन चहरे पर जरा भी सिकन नहीं, सोनू जिसकी उम्र लगभग 5 साल ने बड़ी मासूमियत के साथ बताया कि उसे अब तपती जमीन गर्म नहीं लगती। अब उसे इन सबकी आदत हो चुकी है। स्कूल के बारे में पूछने पर बताया कि उसे नहीं पता कि स्कूल कैसा होता है। ऐसे ही हालात पिंकी, रानी, काला, राजेश व अन्य बच्चों के दिखे। सरकार की बड़ी-बड़ी बातें, नेताओं के बड़े-बड़े दावे और घोषणायें, आखिर कुछ भी तो नहीं हैं। जमीनी हकीकत को देखने पर सब समझ आने लगता है लेकिन जब कोई देखना ही न चाहता हो। कुछ देर की खामोशी के बाद उसके घरवालों ने बताया कि मजदूरी करके जितना कमाते हैं वह सब परिवार के खाने पीने में ही खत्म हो जाता है। ऐसे में उन्हें कई बार तो पैसों के अभाव में भूखे पेट ही सोना पड़ता है। बच्चों को कपड़े, चप्पल और शिक्षा दिलाना तो उनके लिए सपने जैसा है जोकि असम्भव सा प्रतीत होता है। जैसा हमें मिला वैसा ही हमारे बच्चों को मिल जाएगा।
पापी पेट का सवाल है..

आजादी के बाद 70 सालों में भी नहीं मिल पाया भरपेट भोजन
आजादी से आज तक हर सरकार ने नारा दिया गरीबी हटाओ लेकिन यह नारा मात्र नारा ही बनकर रह गया। सरकारें आती रहीं और जाती रही लेकिन आज आजादी के 70 साल बाद भी हम गरीबी मिटाना तो दूर लाखों लोगों को भरपेट भोजन और मूलभूत सुविधाएं नहीं दे पाए। कहने को आज हम चंद्रमा तक जा पहुंचे हैं। बुलेट ट्रेन की बाते हो रही हैं लेकिन हमारे देश में एक भारत और बसता है और वह भारत है वह जो मेहनत मजदूरी करने के बाद भी अपने परिवार को भरपेट रोटी नहीं दे पाता। अपने परिवार को मूलभूत सुविधाएं नहीं दे पाता। देश में आज भी लाखों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं लेकिन राजनेताओं को तो सिर्फ अपने वेतन, भत्तों और सुख सुविधाओं की चिंता है जनता की नहीं। सरकार कागजों में तो बहुत सी योजनायें बनाती है लेकिन सरकर की योजनायें जरूरमंद तक पहुंच ही नहीं पाती। इस प्रकार गरीब की झोली खाली की खाली ही रहती है। ऐसे में देश बेशक विकास के नए आयाम स्थापित कर रहा हो लेकिन दूसरी तरफ सच्चाई यह भी है कि हमारे देश के करोड़ों नागरिक मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर हैं लेकिन सरकार तो मानों बस सिर्फ योजनाएं बनाने में ही व्यस्त हो। ऐसी योजनाएं जो धरातल पर अगर सफल हो गई होती तो लाखों बच्चों का बचपन इस तरह रोता और सिसकता नहीं।
वर्जन
सरकार और समाज संवेदनशील हो चुके हैं। गरीबों के लिए तो मानों शिक्षा, कपड़े और मूलभत सुविधाएं बनीं ही न हों। सरकार हर बार बड़े-बड़े वायदे करती है लेकिन यह वायदे हर बार की तरह हवा-हवाई ही होते हैं। नेताओं और अफसरों को सिर्फ अपने वेतन, भत्तों और सुख-सुविधाओं की फिक्र रहती है। अगर उन्होंने जरा भी ऐसे लोगों के बारे में सोचा होता तो शायद आज देश सही मायने में सोने की चिड़िया होता।
गौरव मित्तल, समाजसेवी
वर्जन
कहने को तो हम 2050 तक दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बनने की ओर अग्रसर है लेकिन दूसरी तरफ देश के विकास और तरक्की को मूँह चिढ़ाती गरीबी। जिसपर हर बार सिर्फ राजनीति होती है, नहीं होता तो गरीबी को हटाने के लिए कार्य। देश में लाखों बच्चों को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता। ऐसे में ऐसे विकास का करना ही क्या है। जिससे देश के लाखों बच्चों को भरपेट खाना नहीं मिल सकता। उन्हें शिक्षा और अन्य मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल सकती।
देवेंद्र गोयल, समाजसेवी
वर्जन
देश में अब लोगों और समाजसेवी संस्थाओं को आवाज बुलन्द करनी चाहिए कि कोई ऐसा कानून बनें। जिसमें अगर गरीब को अगर खाना न मिले तो गाज वहां के अधिकारियों पर गिरे। हर देश को सही मायनों में आगे बढ़ाना है तो हमें गरीबी को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। उसके बिना तो देश का विकास मात्र दिखावा ही बनकर रह जाएगा। हमें भरपेट खाना मिलता है ऐसे में फर्ज हमारा भी बनता है कि हम ऐसे गरीबों के बारे में सोचें और उनकी हरसम्भव मदद के लिए हाथ बढ़ाएँ।
काला सांघन, पार्षद
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