--वीरेन्द्र पाठक,पूर्व सैन्य कर्मचारी एवं पूर्व बैंक अधिकारी
आज एक ज्वलंत विषय संकट बन कर सामने खड़ा हो गया। वास्तविक मुद्दा पर्दे के पीछे कुछ और ही नज़र आ रहा है, बाबा रामदेव के एक बयान ने बवाल मचा दिया, मान लेना चाहिए कि एलोपैथी के विरोध में दिए गए उनके बयान में प्रयोग किए शब्द अवश्य ही आपत्ति जनक थे, जिनके लिए उचित है कि बाबा स्वीकार कर लें।
परन्तु बवाल का कारण पर्दे के पीछे कुछ और ही है, एक के विरुद्ध अनेक क्यों एकजुट हुए, स्पष्टत: बाबा रामदेव ने दवा कम्पनियों को तगड़ा झटका तो पहुँचाया है। बीते कुछ वर्षों में बाबा रामदेव ने इस विद्या का प्रचार व प्रयोग कर जागरूकता फैलाई जिसके परिणामस्वरूप आयुर्वेद को अपनाया जाने लगा जिसका विपरीत प्रभाव दुनिया की बड़ी दवा कम्पनियों पर पड़ा जिससे उनके भारत में हो रहे व्यापार में भारी कमी आई जो उनके लिए चिंता का विषय बना, बाबा के इस बयान ने उन्हें मौक़ा दिया, विरोध बाब का नहीं वास्तव में आयुर्वेद का है जो वर्तमान में अंग्रेज़ी दवाओं को टक्कर देने में सक्षम होता जा रहा है, बाबा रामदेव ने तो इस पद्धति को लोकप्रिय बनाने में अपना योगदान दिया है, उनकी इस भावना को अपने ही देश के डाक्टर सराहना करने के बजाय विरोध के मौक़े की ताक में रहे, क्योंकि उनकी भी तो आर्थिक हानि का कारण बनता जा रह है आयुर्वेद।
आयुर्वेद व एलोपैथी का चिकित्सा जगत में अपनी अपनी जगह महत्वपूर्ण स्थान है, दोनों में स्पर्धा तो हो सकती है टकराव उचित नहीं, बाबा रामदेव की पीड़ा को आज की परिस्थिति में सहज ही स्वीकार कर लेना चाहिए, सत्य भी प्रतीत होता है, कोविड से संक्रमित जो मरीज़ घर पर रहे उनकी मृत्यु दर नगण्य रही, इसके विपरीत जो अस्पताल गए उनमें से अधिकांश वापस नहीं आए।
दोनों ही पद्धतियाँ अपने आप में सम्पूर्ण हैं अन्तर केवल प्रयोग का है, परन्तु उपयोगिता की दृष्टि से आयुर्वेद दवाओं का कोई दुष्प्रभाव सामने नहीं आता जबकि विज्ञान पर आधारित दवाओं के दुष्प्रभाव उसके लाभ के अनुपात में अधिक हैं। ऐसा भी नहीं है कि हर रोग में एलोपैथी का असर जल्दी हो, बुख़ार कम करने में पैरासिटामोल तुरंत असर करती तो उसके मुक़ाबले तुलसी व काली मिर्च का काढ़ा किसी भी प्रकार के ज्वर को तुरन्त प्रभाव से जड़ से समाप्त करता है।
एलोपैथी का इतिहास मात्र 300 वर्ष पुराना है, लेकिन शोध व प्रचार के परिणामस्वरूप इस पद्धति का अधिकांश प्रयोग होने लगा व इनका व्यापार कई हज़ार करोड़ तक पहुँच गया।
अगर आयुर्वेद व एलोपैथी तथ्यों के आधार पर विश्लेषण किया जाए तो आयुर्वेद वनस्पति जन्य ओषधियों पर आधारित प्राचीनतम पद्धति है जिसका वर्णन वेदों में मिलता है, यह विद्या पुरातन ग्रन्थों के अनुसार लगभग 18,575 वर्ष पुरानी है, परन्तु स्पष्ट अथर्ववेद के उपवेद के रूप में आयुर्वेद का लिखित उल्लेख लगभग 5000 वर्ष पूर्व का है जिसे महात्मा धन्वन्तरि ने लिपि बद्ध किया, यह पद्धति मात्र दवाओं द्वारा ही उपचार में दक्ष नही रही अपितु इस पद्धति के अन्तर्गत शल्य चिकित्सा का भी उल्लेख उपलब्ध है, आचार्य सुश्रुत द्वारा आंख के मोतियाबिंद की सबसे पहले सफल शल्य क्रिया (सर्जरी) व अन्य का उल्लेख हमारे पुरातन ग्रन्थों में मिलता है।परन्तु शोध व प्रचार के अभाव के कारण पिछले कुछ समय से इस विधा की गति धीमी पड़ गई थी परन्तु डाबर के साथ पतांजली संस्थान के प्रयास से लोगों ने इस चिकित्सा पद्धति को पुनः अपनाया।
स्पष्ट है कि दुनिया भर की फ़ार्मा कम्पनियों की नज़रों में बाबा रामदेव ही खटक रहे थे इस आपत्ति जनक बयान के बहाने मुद्दा मिल गया विरोध का।
आरोप है कि बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्णन आयुर्वेद के नाम पर देश को लूट रहे हैं, डाक्टर या अस्पताल क्या मुफ़्त में समाज सेवा कर रहे। तथ्य दर्शाते हैं कि एलोपैथी के मुक़ाबले आयुर्वेदिक इलाज पर होने वाला कुल खर्च 1% से भी कम है
आयुर्वेदिक व एलोपैथी का भेद आप स्वयं जाँच सकते हैं
पैनल पर आए सभी डॉक्टर महाशय थुलथुला शरीर, सफ़ेद बाल व आँखों पर मोटे चश्मे लिए
दूसरी ओर बाबा चर्बी रहित गठा शरीर, काले सुन्दर बाल, बिना चश्मे के व शांतिपूर्ण भाव से चर्चा करते रहे।
अपनी पुरातन धरोहर के पक्ष में हम सबको इस प्रसंग को लेकर बाबा रामदेव व अन्य जो इस धरोहर को बढ़ावा देने में जुटे हैं अपना पूर्ण समर्थन देना होगा ।
*प्रस्तुति--डॉ प्रवीण कौशिक*
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