पानीपत :प्रवीण कौशिक
- हिंदी, उर्दू साहित्य, पत्रकारिता एवं लेखन जगत के महान व्यक्तित्व, प्रसिद्ध भजन कर्मी एवं गीतभजनकार तथा जाने माने लोक कलाकार, मातृभाषा सत्याग्रही श्री रामभज शर्मा, मुनक जिला करनाल का गत दिनों 16-1-18 निधन हो गया था ! उनके निधन से न सिर्फ साहित्य जगत बल्कि सामाजिक,पत्रकारिता क्षेत्र को क्षति पहुंची है !
मातृभाषा सत्याग्रही समिति उपमन्यु टुडे
चेरीटेबल ट्रस्ट की एक बैठक समिति के कार्यालय में आयोजित हुई जिसे सम्बोधित करते हुये समिति के वरिष्ठ सदस्य सुभाष जैन ने कहा कि ऐसे मातृभाषी जिन्होने हिंदी के लिए 1957 में हुए आंदोलन में भाग लिया था और करीब 15000 सत्याग्रही व्यक्तित्वो के जरिये अपनी जान की बाजी लगा कर मातृभाषा हिंदी के अस्तित्व को बचाया था और इस दौरान कुछ सत्याग्रहियों की जान भी चली गई थी ! बैठक में सभी सदस्यों द्वारा जोरदार मांग की गई कि ऐसे में बंगाली भाषा की तरह लड़ाई लड़कर हिंदी भाषा को बचाए रखने वालों की तर्ज पर, हरियाणा में भी हिंदी भाषा को बचाए रखने वाले और स्वतंत्र हरियाणा की स्थापना करने में सहयोग अदा करने वाले मातृभाषा सत्याग्रही राज्य स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान प्रदान करने के लिए 1 दिन को मातृभाषा दिवस घोषित किया जाए और जिन मातृभाषा सत्याग्रही आंदोलनकारियों की पहचान व पेंशन अभी तक नहीं बनी है और प्रदेश के विभिन्न जिला मुख्यालयों में जो उनके आवेदन विचारणीय रखे हुये है, उन सभी सत्याग्रहियों की पेंशन भी राज्य सरकार शीघ्र चालू करें ! ताकि उन सभी को भी मान सम्मान मिल सके ! बैठक में नरेन्द्र कुमार , जयभगवान अत्री,हिमांशु शर्मा, भरतो देवी, कृष्णा देवी,विश्वनाथ शर्मा, रामशरण पाल, जगदीश चन्द्र वसु, सुमन शर्मा, शीला देवी, प्रेमो देवी, संदीप कुमार, सुभाष दीपक जैन आदि ने उनके बताए मार्ग पर चलने का आह्वान किया और रामभज शर्मा जी को दो मिनट का मौन धारण कर सच्ची श्रंद्धाजलि दी गई! रामभज शर्मा जी विराट जीवन के व्यक्तित्व थे ! वे युवा नेतृत्व ज्योति पत्र समूह में पिछले लगभग दो दशक से वह अपनी रचनाओं और लेखों के माध्यम से दर्शकों में काफी लोकप्रिय थे ! गत दिनो उनके निधन पर हरियाणा सरकार व विभिन्न अकादमियों के निदेशकों शासी परिषद के सदस्य,सूचना जनसंपर्क एवं भाषा विभाग के निदेशक सहित काफी पदाधिकारियों ने गहरा दुख जताया था ! 15 जनवरी 42 को पिता श्री गीताराम शर्मा, माता छोटी देवी जी के यहां मुनक गांव में जन्मे रामभज शर्मा बचपन से ही मेधावी एवं उत्कृष्ट बुद्धि के व्यक्तित्व थे ! गांव में ही उच्च शिक्षा ग्रहण करके उन्होंने सरकारी क्षेत्र में भी कभी समय नहरी महकमे में तार बाबू जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए बिताया! यह प्रकृति की विडंबना ही है कि 1 दिन पहले उनका जन्मदिन था और अगले ही दिन अपने परिवार के लोगों के बीच उन्होंने दम तोड़ दिया! बताया जाता है कि दो-तीन दिन पहले अचानक वह फिसल गए थे और उन्हें चोट आई थी, चिकित्सकों ने उन्हें मना कर दिया ! ऐसे मे वे घर पर ही प्राकृतिक ऑक्सीजन पर सांस ले रहे थे ! उनके पुत्र को भी लोगों की जान बचाने और समाज सेवा के क्षेत्र में लोगों की मदद के लिए सैकड़ों बहादुरी वीरता व पत्रकारिता के पुरस्कारों से प्रदेश में राज्यपाल व मुख्यमंत्री के कर कमलों से सम्मानित किया जा चुका है ! श्री रामभज जी की मृत्यु होने के बाद उनके परिवार में उनकी पत्नी, पुत्रवधू इकलौते पुत्र, दो पोत्रों से भरा पूरा परिवार है! श्री रामभज शर्मा वर्ष 1957 में हिंदी भाषा के लिए खूब लड़े और जत्थों का नेतृत्व किया! राष्ट्रभाषा और राजभाषा हिंदी के अस्तित्व को बचाने के लिए सैकड़ों हिंदी वासियों को जोड़ा और उन्हें संबोधित किया उसी के बूते वर्ष 1966 में हरियाणा राज्य की नींव रखी गई ! वर्ष 1975 में आपातकाल के दौरान भी उनकी सक्रिय भूमिका रही ! श्री रामभज शर्मा के निधन से सामाजिक साहित्यिक वरिष्ठ राजभाषा हिंदी जगत को गहरी ठेस पहुंची है ! उधर उनकी मृत्यु पर शोक जताने वालों में हरियाणा, पंजाबी,साहित्य, उर्दू एवं ग्रंथ अकादमी के डिप्टी चेयरमैन एवं निदेशकगण ने गहरा शोक जताया और 2 मिनट का मौन रखकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की! साहित्य लेखक एवं उनके साथ लगभग दो दशक पुराना संपर्क बनाएं रखने वाले प्रमुख इतिहासकार एवं साहित्यकार डॉक्टर नरेंद्र कुमार उपमन्यु बताते हैं कि रामभज शर्मा जी का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावी था ! रामभज शर्मा जी के लोकप्रिय गीतों, भजनों और उनके व्यक्तित्व को इन दिनों हरियाणा सरकार संकलित कर उसे पुस्तक रूप में प्रस्तुत करने जा रही है! डॉ. उपमन्यु बताते हैं उनका व्यक्तित्व आजीवन उपलब्धि युक्त रहा और जीवन में उन्होंने कभी झुकना नहीं सीखा ! जीवन के लगभग 8 दशक जीने के दौरान उन्होंने जीवन में कभी किसी का दिल नहीं दुखाया और वह सबकी आर्थिक व सामाजिक तौर पर मदद भी करते थे! वह बताते हैं कि भारत की धरा पर इस तरह की विभूतियां कभी कभार ही जन्म लेती है जो मरणोपरांत भी अपने नाम की छाप छोड़ जाती है ! ऐसी महान विभूति को वह नमन करते हैं! पंजाब के गांव ढिंडारू में जन्मे, उसके एक साल बाद मूनक में आगमन, पिता का नाम गीताराम, मां छोटी देवी, दादा गोविन्द राम, माता पिता का जयेष्ठ पुत्र दो छोटी बहनें 1 भाई बड़ा होने के कारण परिवार की सभी जिम्मेदारी। 2 पुत्र 3 पुत्री, 1 पुत्र का देहान्त 5वर्ष मे 2 लडकी देहान्त शादीशुदा धुर्घटना के कारण, परिवार एक जगह से दुसरी जगह होने के कारण आर्थिक स्थिति कमजोर, पिता के घर कार्य व खेतों का कार्य में पूरा सहयोग पढ़ाई पाचंवी में अपने मामा की मृत्यु के कारण मामा के गांव घोघा (दिल्ली मे रहना) उसके बाद फिर परिवार के पालन के लिये मजदूरी करना जैसे ईट बनाना आता उसके बाद सिचाई विभाग में कच्चे में लगना 1968 में पक्का होना उसके बेलदार, पनसारी, जमादारी ईन्चार्ज पर रिटायर होना, 2002 में रिटायर होना। इन्द्री, खुवडू झालू मूनक खेड़ पर पूरी नोकरी की, ताऊ सीताराम सांगी होने के कारण पिता खूद भी रागनी का शौकिन, रामलिला में नाटक जनक का बहुत का बेहतरीन रोल सभी आधिकारी का प्यारा कई आदमियों को नौकरी लगवाने में सहायता की उस समय आधिकारी के कहने पर नौकरी मिलती थी। कभी रिश्वत नहीं ली जो भी आया सभी का कार्य किया अपने छोटे भाई को भी सिचाई विभाग में कार्य करता है मार बाबू पद पर पूरी नौकरी बेदाग रही। शादी पाठा गांव में प्रेमो देवी के साथ हुआ पहली शादी कलाम पुरा करनाल में हुई कुछ समय के बाद मृत्यु उसके बाद प्रेमो देवी के साथ 1966 में शादी कद 6 फुट खेलकूद जोर आजमाई, कबड्डी नौकरी लगने के बाद लगभग नहर के सरकारी क्वाटर पर रहना उस समय नौकरी हैड़ जमादारी की जिम्मेवारी पूरी 24 घंटे की थी बाकी सभी की आंठ घंटे ड्यूटी थी। भाई शिवचरण शर्मा सिचाई विभाग (तार बाबू) बहन स्व० पनवेश्वरी, बहन अंगूरी देवी 1 पुत्री सुनीता देवी अपने परिवार के उत्थान में अहम भूमिका रही, कई बार जिन्दगी में उतार चढ़ाव आये बचपन में अपने छोटे भाई की मृत्यु, उसके बाद चाचा चन्दगीराम की मृत्यु। जसकी पत्नी आज तक भी दुबारा शादी नहीं की इसके पुत्र सतपाल की 5 वर्ष की आयु में मृत्यु, दो लडकी को कृष्णा, कमल की मृत्यु कृष्णा के दो पुत्र कमला के एक पुत्र जन्म के बाद दुर्घटना में एक ही साथ हो गई कृष्णा व कमला दोनो लेडके आज अपने काम पर तैनात है पौत्र विवेकानन्द 12 वर्ष आयु में दुघर्टना बचपन में ही हो गई अपनी पढाई मामा के घर सम्भालने के लिये चले गये बाद में मामा का लड़का गांव घोधा का तीन बार सरपंच बना, वह अपने बाहर गांव का ब्राहमण समाज का प्रधान रहा। अपने छोटे भाई जो उसके पुत्र की आयु से छोड़ा सा बड़ा अपने पुत्र की तरह पढ़ाया उसकी शादी से पहले उसे नौकरी पर लगवा दिया । उसने अपनी चचेरी साली के साथ धूम-धाम से शादी की, भाई के चार लड़के व एक पुत्री सारी जिन्दगी सादगीपूर्वक व्यतित की एक पुत्र जयेष्ट जेय भगवान भजी, समाजिक कार्यकर्ता जो पहले घड़ी व रेडियो, टीवी की दुकानदारी गॉव में करता ऐसे महान पुरूष से मिला जिसकी जिन्दगी 1 से दो नही 11 बना दिया उसकी तडप बचपन से थी भाई मिल गया । जो बचपन कहॉ करते थे । यदि मुझे भाई की प्यारा है भाई का दुलार है वो मिलना, अनेक प्रकार के समाज सेवा दिन का पैंशन, बुढ़ापा पैंशन, साफ-सफाई पठन-पढ़ाई, साक्षरता, मानव अधिकारों के बारे श्रम विभाग में मजइूरों के बारे एस.सी,बी.सी जनरल को सरकार की स्कीमों के बारे में, जैसे भी तरह के मिले साथ लेते गये, कोई छोड़ा नही जाड़ते चले लड़की गॉव पडवाला तरावड़ी में तीनों लड़की शादी हुई छोटी लड़की आगंन वाड़ी में ऐ.डब्लू. डब्लू हैं वह भी समाज के उत्थान के लिए ज्यादा कार्य करती है दान में ज्यादा विश्वास करती है गाँव की कोई महिला उसके पास आती है तो वह खाली नही जाने देती। गाँव में गरीब लड़की की शादी मे दान देती है जब उसकी शादी गरीब घर में थी। उस समय उसके घर सभी प्रकार की सुविधा प्राप्त थी। उस घर का इतना उत्थान हुआ घर की काया पलट गई, पुत्र की शादी की किसी प्रकार की देहज नहीं मांगा उसने कहां मुझे प्रिय पुत्रवधु नहीं पुत्री चाहिए। मैं बहु को नहीं लाई, पुत्री लाई, उसने अपने पास बहु के समान की कमी होते ही पूरी कर देती थी। शादी पूरी धूम-धाम से की, रामभज आजादी की लड़ाई में जब लगभग 13 वर्ष का था, उस समय लोगों को देखा किस तरह से गाँव के सारे लोग आजादी की लडाई लडने के लिए गाँव से निकल पडे़ थे। मुलक मुसलमान गाँव था। वह अपनी जान बचाने के लिए पास के गाँव गगसीना में रहे। जब मुसलमान गांव से गये तब वे गांव में आये उस समय का दृश्य आँखों के सामने आता तो रोंगटे खडे हो जाते है। बुरा समय जब आजादी के समय आया तब हरे-भरे गाँव में जैसे ग्रहण लग गया। भाई-भाई का दुशमन हो गया पहले हिन्दु मुसलमान भाई-भाई बनकर यहां पर रहते थे, और गोरे लोगों को मिलकर देश से निकाला। सभी कन्धे से कन्धा मिला कर देश को आजादी दी उसके बाद पता नहीं किस ने भाई-भाई के बीच में जहर घोल दिया।
हिन्दूस्तान को दो भागों में बाँट दिया। वह हादसा जिसने भी देखा उसकी आँखों में आज भी खौफ नजर आता है। मूनक गाँव में मुसलमान ज्यादा थे आस-पास के गाँव में मुसलमान कम थे। सभी की नजर मूनक गाँव पर थी की मुसलमानों को यहां से कैसे निकाला जाए। 22 गाँवों के लोग इकट्ठा होकर मूनक गाँव पर हल्ला भोल दिया मूनक की महिलाए व बच्चे पास के गाँव गगसीना में चले गये। हिन्दु मोहल्ला अलग था, बाकी तीन मोहल्ले मुसलमानों के थे इसके कारण सभी हिन्दुओं को गाँव छोड़ कर दूसरे गाँव में जाना पड़ा। वहां गाँव के बाहर पहरे लग गए, जब सभी मुसलमान यहां से चले गए तब पाकीस्तान से आए हिन्दु लोग खाली पड़े चोपालों और मकानों में रहे यहा के लोगों ने उनकी पूरी सहायता की जिस समान की जरूरत होती थी सभी को दिए काफी समय बाद अमन शान्ती हुई, फिर देश की तरक्की के दौर की शुरूआत हुई। 1962 में कच्ची नौकरी पर लगने के बाद 1963 में नौकरी पक्की हो गई, उस दौर में अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव आए। नहर में कड़ी आती थी जब उसे बंद व खोलने के लिए कडी डालनी व निकलनी पडती थी तो काफी पल्लेदारों की जरूरत पड़ती थी जो पानी के बहाव में बह जाती उसे निकालने के लिए तैरने वाले शर्दी व गर्मी में पानी के अन्दर जाकर निकाल कर लाना जान पर खेलने के बराबर था। कच्ची नहर होने के कारण रास्ते में राजबाहे कट जाते थे। बारिश के दिनों में तो पानी आधिक हो जाने के कारण और मिट्टी के बहाव के कारण राजबाहे व नहर टूटते रहते थे। उस समय मशिन आदि न होने के कारण सैकडों लोग नौकरी करते थे, व कच्चे बेलदार लगाकर उनको बन्द किया जाता था। कई-कई दिनों तक वही पर रहना पड़ता था। समय बदल गया नहर पक्की बनने लगी कडी की जगह गेट लगवाये गए। आने लगी आराम की जिन्दगी आदमी रिटायर होते चले गए, आदमी भी कम होते चले गए जहां 24 घंटे रहना पड़ता था वहां 8 घंटे हो गए। दिल्ली का सारा पीने का पानी थर्मल में पानी सभी मूनक नहर से जाता था कभी कंच कर भी पानी कम ज्यादा होता तुरन्त अधिकारी आ जाते थे। पूरी तोल कर पानी दिल्ली ब्रांच गोहाना राजबाहा, हांसी ब्रांच मौली राजबाहा एस्केप आदि ब्रांच होती थी। राजबाहे से सभी जमीदारों को पानी देना पूरा मापतोल के हिसाब से देना पंड़ित रामभज शर्मा के हाथों में किसी की पूछ नहीं रामभज शर्मा से पूछा जाना कभी भी अपनी नौकरी में किसी अधिकारी को नराज नहीं किया। एक बार दिल्ली का अधिकारी एक्स.इ.एन अचानक दौरे पर आके चैक करने लगा। जहां पर पानी नपता था वहां हैड की डेड़ किलोमिटर की दूरी पर था एक्स.इ.एन पानी देखकर आया। उसे पानी ज्यादा मिला और हैड पर आकर हेड इन्चार्ज रामभज शर्मा से पूछने लगा। पानी कितना है उसने कागज के हिसाब से बताया, वह कहने लगा नदी में 2 हिस्से पानी ज्यादा है। वह कहने लगा नहीं साहब पानी पूरा है, तब वह बाप गया और अपने बेलदार से ईशारे में कहां कि दो चक्कर कम कर दो। बेलदार संकेत समझ गया तुरन्त कार्रवाई कर दी। काफी सकय तक बाहस चलती रही। यहां तक की अधिकारी ने बोला की तुझे नहर में डाल दूगा तुने दिल्ली को डुबाने का ठेका ले रखा है। काफी समय तक बहस होती रही अधा घण्टा लग गया वहा गये जितने पानी की जरूरत थी उससे कम पानी मिला। एक्स.इ.एन का परिवार साथ तभी उसका बेटा बोला पिता जी इर्न्चाज सही है। अब बताओं कोन नहर में कूदेगा जैसा होता था। उस समय अधिकारी ने शर्म महसूस कि। कभी उस अधिकारी ने उन्हे सम्मान दिया। उनके नीचे 100 आदमी काम करते थे और वे सभी उनका मान सम्मान करते थे। पता नहीं कतने अधिकारीयों के साथ काम किया परन्तु लक्ष्मी जे.ई. व बृजभूषण शर्मा तार बाबू के साथ काफी समय तक रहे। बृज भूषण शर्मा से काफी अनुभव सीखा उसने कभी भी किसी अधिकारी को अपनी शिकायत का मोका नहीं दिया एक बार एक नहर में पानी ज्यादा आजाने के कारण नहर टूट गई वहा के अधिकारी ने इर्न्चाज की शिकायत कर उसे सस्पैंड करने का ऑर्डर कर दिया। तार भाई रामभज शर्मा ने जवाब दिया कि इसमे मेरी कोई गलती नहीं है। उसने जिस हिसाब से पानी रजिस्टर पर जे.ई से भरवाये तब सभी सबूत अधिकारी को दिखाये फिर भी उन्होंने जे.ई को सस्पैंड कर दिया। अपनी बुद्धि से काम कर मुसीबत के समय पर अपना बचाव करने की उनके अन्दर इतनी क्षमता थी। पढ़ाई कम होने के कारण कम उन्नति कर सका और हैड जमादार पर 2002 में रिटायार हो गई। मेहनत करके कस्सी चला-चला कर खेतों के बडे-बडे गड्ढे़ ठीक-ठाक कर खेत को बनाना मेरी मेहनत कर फसल उगाना गाँव की संस्कृति जैसे गाय, भैंस रखना उसका पालन कर क्रय-विक्रय करना पूरी जिन्दगी एक ही साईकिल पर बता देना घडी का पूरा शोकिन, रेडियो को सूनना हरियाणवी पूरी चाव से सूनना अखबार पढ़ना पत्रिका पढ़ना अपना शौक रखा बिडी पीना उस समय हुक्के का शौक था उसने बिड़ी पीना सीख लिया परन्तु बाद में छोड़ दिया शराब का सेवन कभी नहीं किया गाँव में सभी से मिलन सार सभी जाति के लोगों से मिलना जुलना अपना महत्व स्व० मास्टर मूल चन्द के साथ बैठ कर चाय की चूसकी लेना अगर आपस में न मिले तो मास्टर फूल चन्द अपनी दुकान छोड कर उसके पास आ जाता व हाल चाल पूछता, क्योकि एक साथ पढ़े व बाद में मास्टर के पिता ठेकेदार माहनलाल जी नहर पर रहते थे वही मस्टर जी रहते थे । पण्डित रामभज शर्मा भी वहीं नौकरी करते थे। वे दोनो इकट्ठे रहते थे । बाद में मास्टर जी गांव में आ गये । वहां अपनी दुकानदारी पर बैठ गये । वहां पण्डित रामभज शर्मा भी समय बिताने के लिये आपस में बैठकर समाज व अपने परिवार की बाते करते । मास्टर की मृत्यु 2015 में होने पर जैसे आपस में हंस की जोड़ी टुट गई । काफी जिन्दगी में धक्का लगा । भाई से बढ़कर था प्यार । जहां भी रहा वहां के लोगो को अपना बनाना उसकी अपनी पहचान थी । बचपन में मामा गांव घोघा में रहे । आज भी वहां के लोग जो उसकी उम्र के थे उसकी तारीफ करते है । दो जगह बदली हुई, वहां भी खूबड़ू झाल व इन्द्री में वहां के आस-पास के गांव के लोग जो उसके साथ रहे ! वे सभी पण्डित रामभज शर्मा की तारीफ करते है, काफी दूर-दूर साईकल पर जा कर ड्यूटी की खूबड़ू से कभी माता-पिता के पास नहर के पास साईकल पर आना जाना । रिश्तेदारी में उस समय साईकल पर लोगों का आना जाना होता था ।
दादी का नाम सिबो दादा गोविन्द राम परदादा नत्थू राम लगभग 200 वर्ष पूर्व डिंडाडू पंजाब गाँव से आये मूनक में अपनी रिश्तेदारी में रहने लगे। यहा पर रहने वाले आज भी इस परिवार को पुजनीय मानते है। बडे-बुर्जुग कहते थे कि जब हम यहाँ से जाने लगे तो उस का देवता नाम बन कर गाड़ी के आगे आ गये। जिधर गाड़ी मे जोते बैल को मोड़ते वो उधर ही आगे आ जाता था उसके बाद फिर उनमें से जो छोडने के लिये जा रहे थे उन्होंने उसे जान वापस ले आये तब से आज तक यहां मूनक में निवास करने लगे। वहा कि जमीन भी देकर कुछ न तो लेली परन्तु किसी कारण वश जमीन नहीं ली गई। पिता पर कई जिम्मेदारी थी जो इस तरफ ध्यान न देकर परिवार के पालन-पोषन व मेहनत मे लगे रहे। सीधा सा सुन्दर सढ़ौल शरीर का सीताराम अपने कार्य से कार्य रखना उसका अपना दिन चर्या कार्य करना उसका जैसा जिन्दगी का उद्देश्य था। माता छोटी देवी जो बहुत शरीफ महिला थी। सभी उस समय अलग-अलग मुहल्ले होते थे। मुहल्ले में प्रेम से रहना उनका अपनी दिनचर्या में था।
- हिंदी, उर्दू साहित्य, पत्रकारिता एवं लेखन जगत के महान व्यक्तित्व, प्रसिद्ध भजन कर्मी एवं गीतभजनकार तथा जाने माने लोक कलाकार, मातृभाषा सत्याग्रही श्री रामभज शर्मा, मुनक जिला करनाल का गत दिनों 16-1-18 निधन हो गया था ! उनके निधन से न सिर्फ साहित्य जगत बल्कि सामाजिक,पत्रकारिता क्षेत्र को क्षति पहुंची है !
मातृभाषा सत्याग्रही समिति उपमन्यु टुडे
चेरीटेबल ट्रस्ट की एक बैठक समिति के कार्यालय में आयोजित हुई जिसे सम्बोधित करते हुये समिति के वरिष्ठ सदस्य सुभाष जैन ने कहा कि ऐसे मातृभाषी जिन्होने हिंदी के लिए 1957 में हुए आंदोलन में भाग लिया था और करीब 15000 सत्याग्रही व्यक्तित्वो के जरिये अपनी जान की बाजी लगा कर मातृभाषा हिंदी के अस्तित्व को बचाया था और इस दौरान कुछ सत्याग्रहियों की जान भी चली गई थी ! बैठक में सभी सदस्यों द्वारा जोरदार मांग की गई कि ऐसे में बंगाली भाषा की तरह लड़ाई लड़कर हिंदी भाषा को बचाए रखने वालों की तर्ज पर, हरियाणा में भी हिंदी भाषा को बचाए रखने वाले और स्वतंत्र हरियाणा की स्थापना करने में सहयोग अदा करने वाले मातृभाषा सत्याग्रही राज्य स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान प्रदान करने के लिए 1 दिन को मातृभाषा दिवस घोषित किया जाए और जिन मातृभाषा सत्याग्रही आंदोलनकारियों की पहचान व पेंशन अभी तक नहीं बनी है और प्रदेश के विभिन्न जिला मुख्यालयों में जो उनके आवेदन विचारणीय रखे हुये है, उन सभी सत्याग्रहियों की पेंशन भी राज्य सरकार शीघ्र चालू करें ! ताकि उन सभी को भी मान सम्मान मिल सके ! बैठक में नरेन्द्र कुमार , जयभगवान अत्री,हिमांशु शर्मा, भरतो देवी, कृष्णा देवी,विश्वनाथ शर्मा, रामशरण पाल, जगदीश चन्द्र वसु, सुमन शर्मा, शीला देवी, प्रेमो देवी, संदीप कुमार, सुभाष दीपक जैन आदि ने उनके बताए मार्ग पर चलने का आह्वान किया और रामभज शर्मा जी को दो मिनट का मौन धारण कर सच्ची श्रंद्धाजलि दी गई! रामभज शर्मा जी विराट जीवन के व्यक्तित्व थे ! वे युवा नेतृत्व ज्योति पत्र समूह में पिछले लगभग दो दशक से वह अपनी रचनाओं और लेखों के माध्यम से दर्शकों में काफी लोकप्रिय थे ! गत दिनो उनके निधन पर हरियाणा सरकार व विभिन्न अकादमियों के निदेशकों शासी परिषद के सदस्य,सूचना जनसंपर्क एवं भाषा विभाग के निदेशक सहित काफी पदाधिकारियों ने गहरा दुख जताया था ! 15 जनवरी 42 को पिता श्री गीताराम शर्मा, माता छोटी देवी जी के यहां मुनक गांव में जन्मे रामभज शर्मा बचपन से ही मेधावी एवं उत्कृष्ट बुद्धि के व्यक्तित्व थे ! गांव में ही उच्च शिक्षा ग्रहण करके उन्होंने सरकारी क्षेत्र में भी कभी समय नहरी महकमे में तार बाबू जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए बिताया! यह प्रकृति की विडंबना ही है कि 1 दिन पहले उनका जन्मदिन था और अगले ही दिन अपने परिवार के लोगों के बीच उन्होंने दम तोड़ दिया! बताया जाता है कि दो-तीन दिन पहले अचानक वह फिसल गए थे और उन्हें चोट आई थी, चिकित्सकों ने उन्हें मना कर दिया ! ऐसे मे वे घर पर ही प्राकृतिक ऑक्सीजन पर सांस ले रहे थे ! उनके पुत्र को भी लोगों की जान बचाने और समाज सेवा के क्षेत्र में लोगों की मदद के लिए सैकड़ों बहादुरी वीरता व पत्रकारिता के पुरस्कारों से प्रदेश में राज्यपाल व मुख्यमंत्री के कर कमलों से सम्मानित किया जा चुका है ! श्री रामभज जी की मृत्यु होने के बाद उनके परिवार में उनकी पत्नी, पुत्रवधू इकलौते पुत्र, दो पोत्रों से भरा पूरा परिवार है! श्री रामभज शर्मा वर्ष 1957 में हिंदी भाषा के लिए खूब लड़े और जत्थों का नेतृत्व किया! राष्ट्रभाषा और राजभाषा हिंदी के अस्तित्व को बचाने के लिए सैकड़ों हिंदी वासियों को जोड़ा और उन्हें संबोधित किया उसी के बूते वर्ष 1966 में हरियाणा राज्य की नींव रखी गई ! वर्ष 1975 में आपातकाल के दौरान भी उनकी सक्रिय भूमिका रही ! श्री रामभज शर्मा के निधन से सामाजिक साहित्यिक वरिष्ठ राजभाषा हिंदी जगत को गहरी ठेस पहुंची है ! उधर उनकी मृत्यु पर शोक जताने वालों में हरियाणा, पंजाबी,साहित्य, उर्दू एवं ग्रंथ अकादमी के डिप्टी चेयरमैन एवं निदेशकगण ने गहरा शोक जताया और 2 मिनट का मौन रखकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की! साहित्य लेखक एवं उनके साथ लगभग दो दशक पुराना संपर्क बनाएं रखने वाले प्रमुख इतिहासकार एवं साहित्यकार डॉक्टर नरेंद्र कुमार उपमन्यु बताते हैं कि रामभज शर्मा जी का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावी था ! रामभज शर्मा जी के लोकप्रिय गीतों, भजनों और उनके व्यक्तित्व को इन दिनों हरियाणा सरकार संकलित कर उसे पुस्तक रूप में प्रस्तुत करने जा रही है! डॉ. उपमन्यु बताते हैं उनका व्यक्तित्व आजीवन उपलब्धि युक्त रहा और जीवन में उन्होंने कभी झुकना नहीं सीखा ! जीवन के लगभग 8 दशक जीने के दौरान उन्होंने जीवन में कभी किसी का दिल नहीं दुखाया और वह सबकी आर्थिक व सामाजिक तौर पर मदद भी करते थे! वह बताते हैं कि भारत की धरा पर इस तरह की विभूतियां कभी कभार ही जन्म लेती है जो मरणोपरांत भी अपने नाम की छाप छोड़ जाती है ! ऐसी महान विभूति को वह नमन करते हैं! पंजाब के गांव ढिंडारू में जन्मे, उसके एक साल बाद मूनक में आगमन, पिता का नाम गीताराम, मां छोटी देवी, दादा गोविन्द राम, माता पिता का जयेष्ठ पुत्र दो छोटी बहनें 1 भाई बड़ा होने के कारण परिवार की सभी जिम्मेदारी। 2 पुत्र 3 पुत्री, 1 पुत्र का देहान्त 5वर्ष मे 2 लडकी देहान्त शादीशुदा धुर्घटना के कारण, परिवार एक जगह से दुसरी जगह होने के कारण आर्थिक स्थिति कमजोर, पिता के घर कार्य व खेतों का कार्य में पूरा सहयोग पढ़ाई पाचंवी में अपने मामा की मृत्यु के कारण मामा के गांव घोघा (दिल्ली मे रहना) उसके बाद फिर परिवार के पालन के लिये मजदूरी करना जैसे ईट बनाना आता उसके बाद सिचाई विभाग में कच्चे में लगना 1968 में पक्का होना उसके बेलदार, पनसारी, जमादारी ईन्चार्ज पर रिटायर होना, 2002 में रिटायर होना। इन्द्री, खुवडू झालू मूनक खेड़ पर पूरी नोकरी की, ताऊ सीताराम सांगी होने के कारण पिता खूद भी रागनी का शौकिन, रामलिला में नाटक जनक का बहुत का बेहतरीन रोल सभी आधिकारी का प्यारा कई आदमियों को नौकरी लगवाने में सहायता की उस समय आधिकारी के कहने पर नौकरी मिलती थी। कभी रिश्वत नहीं ली जो भी आया सभी का कार्य किया अपने छोटे भाई को भी सिचाई विभाग में कार्य करता है मार बाबू पद पर पूरी नौकरी बेदाग रही। शादी पाठा गांव में प्रेमो देवी के साथ हुआ पहली शादी कलाम पुरा करनाल में हुई कुछ समय के बाद मृत्यु उसके बाद प्रेमो देवी के साथ 1966 में शादी कद 6 फुट खेलकूद जोर आजमाई, कबड्डी नौकरी लगने के बाद लगभग नहर के सरकारी क्वाटर पर रहना उस समय नौकरी हैड़ जमादारी की जिम्मेवारी पूरी 24 घंटे की थी बाकी सभी की आंठ घंटे ड्यूटी थी। भाई शिवचरण शर्मा सिचाई विभाग (तार बाबू) बहन स्व० पनवेश्वरी, बहन अंगूरी देवी 1 पुत्री सुनीता देवी अपने परिवार के उत्थान में अहम भूमिका रही, कई बार जिन्दगी में उतार चढ़ाव आये बचपन में अपने छोटे भाई की मृत्यु, उसके बाद चाचा चन्दगीराम की मृत्यु। जसकी पत्नी आज तक भी दुबारा शादी नहीं की इसके पुत्र सतपाल की 5 वर्ष की आयु में मृत्यु, दो लडकी को कृष्णा, कमल की मृत्यु कृष्णा के दो पुत्र कमला के एक पुत्र जन्म के बाद दुर्घटना में एक ही साथ हो गई कृष्णा व कमला दोनो लेडके आज अपने काम पर तैनात है पौत्र विवेकानन्द 12 वर्ष आयु में दुघर्टना बचपन में ही हो गई अपनी पढाई मामा के घर सम्भालने के लिये चले गये बाद में मामा का लड़का गांव घोधा का तीन बार सरपंच बना, वह अपने बाहर गांव का ब्राहमण समाज का प्रधान रहा। अपने छोटे भाई जो उसके पुत्र की आयु से छोड़ा सा बड़ा अपने पुत्र की तरह पढ़ाया उसकी शादी से पहले उसे नौकरी पर लगवा दिया । उसने अपनी चचेरी साली के साथ धूम-धाम से शादी की, भाई के चार लड़के व एक पुत्री सारी जिन्दगी सादगीपूर्वक व्यतित की एक पुत्र जयेष्ट जेय भगवान भजी, समाजिक कार्यकर्ता जो पहले घड़ी व रेडियो, टीवी की दुकानदारी गॉव में करता ऐसे महान पुरूष से मिला जिसकी जिन्दगी 1 से दो नही 11 बना दिया उसकी तडप बचपन से थी भाई मिल गया । जो बचपन कहॉ करते थे । यदि मुझे भाई की प्यारा है भाई का दुलार है वो मिलना, अनेक प्रकार के समाज सेवा दिन का पैंशन, बुढ़ापा पैंशन, साफ-सफाई पठन-पढ़ाई, साक्षरता, मानव अधिकारों के बारे श्रम विभाग में मजइूरों के बारे एस.सी,बी.सी जनरल को सरकार की स्कीमों के बारे में, जैसे भी तरह के मिले साथ लेते गये, कोई छोड़ा नही जाड़ते चले लड़की गॉव पडवाला तरावड़ी में तीनों लड़की शादी हुई छोटी लड़की आगंन वाड़ी में ऐ.डब्लू. डब्लू हैं वह भी समाज के उत्थान के लिए ज्यादा कार्य करती है दान में ज्यादा विश्वास करती है गाँव की कोई महिला उसके पास आती है तो वह खाली नही जाने देती। गाँव में गरीब लड़की की शादी मे दान देती है जब उसकी शादी गरीब घर में थी। उस समय उसके घर सभी प्रकार की सुविधा प्राप्त थी। उस घर का इतना उत्थान हुआ घर की काया पलट गई, पुत्र की शादी की किसी प्रकार की देहज नहीं मांगा उसने कहां मुझे प्रिय पुत्रवधु नहीं पुत्री चाहिए। मैं बहु को नहीं लाई, पुत्री लाई, उसने अपने पास बहु के समान की कमी होते ही पूरी कर देती थी। शादी पूरी धूम-धाम से की, रामभज आजादी की लड़ाई में जब लगभग 13 वर्ष का था, उस समय लोगों को देखा किस तरह से गाँव के सारे लोग आजादी की लडाई लडने के लिए गाँव से निकल पडे़ थे। मुलक मुसलमान गाँव था। वह अपनी जान बचाने के लिए पास के गाँव गगसीना में रहे। जब मुसलमान गांव से गये तब वे गांव में आये उस समय का दृश्य आँखों के सामने आता तो रोंगटे खडे हो जाते है। बुरा समय जब आजादी के समय आया तब हरे-भरे गाँव में जैसे ग्रहण लग गया। भाई-भाई का दुशमन हो गया पहले हिन्दु मुसलमान भाई-भाई बनकर यहां पर रहते थे, और गोरे लोगों को मिलकर देश से निकाला। सभी कन्धे से कन्धा मिला कर देश को आजादी दी उसके बाद पता नहीं किस ने भाई-भाई के बीच में जहर घोल दिया।
हिन्दूस्तान को दो भागों में बाँट दिया। वह हादसा जिसने भी देखा उसकी आँखों में आज भी खौफ नजर आता है। मूनक गाँव में मुसलमान ज्यादा थे आस-पास के गाँव में मुसलमान कम थे। सभी की नजर मूनक गाँव पर थी की मुसलमानों को यहां से कैसे निकाला जाए। 22 गाँवों के लोग इकट्ठा होकर मूनक गाँव पर हल्ला भोल दिया मूनक की महिलाए व बच्चे पास के गाँव गगसीना में चले गये। हिन्दु मोहल्ला अलग था, बाकी तीन मोहल्ले मुसलमानों के थे इसके कारण सभी हिन्दुओं को गाँव छोड़ कर दूसरे गाँव में जाना पड़ा। वहां गाँव के बाहर पहरे लग गए, जब सभी मुसलमान यहां से चले गए तब पाकीस्तान से आए हिन्दु लोग खाली पड़े चोपालों और मकानों में रहे यहा के लोगों ने उनकी पूरी सहायता की जिस समान की जरूरत होती थी सभी को दिए काफी समय बाद अमन शान्ती हुई, फिर देश की तरक्की के दौर की शुरूआत हुई। 1962 में कच्ची नौकरी पर लगने के बाद 1963 में नौकरी पक्की हो गई, उस दौर में अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव आए। नहर में कड़ी आती थी जब उसे बंद व खोलने के लिए कडी डालनी व निकलनी पडती थी तो काफी पल्लेदारों की जरूरत पड़ती थी जो पानी के बहाव में बह जाती उसे निकालने के लिए तैरने वाले शर्दी व गर्मी में पानी के अन्दर जाकर निकाल कर लाना जान पर खेलने के बराबर था। कच्ची नहर होने के कारण रास्ते में राजबाहे कट जाते थे। बारिश के दिनों में तो पानी आधिक हो जाने के कारण और मिट्टी के बहाव के कारण राजबाहे व नहर टूटते रहते थे। उस समय मशिन आदि न होने के कारण सैकडों लोग नौकरी करते थे, व कच्चे बेलदार लगाकर उनको बन्द किया जाता था। कई-कई दिनों तक वही पर रहना पड़ता था। समय बदल गया नहर पक्की बनने लगी कडी की जगह गेट लगवाये गए। आने लगी आराम की जिन्दगी आदमी रिटायर होते चले गए, आदमी भी कम होते चले गए जहां 24 घंटे रहना पड़ता था वहां 8 घंटे हो गए। दिल्ली का सारा पीने का पानी थर्मल में पानी सभी मूनक नहर से जाता था कभी कंच कर भी पानी कम ज्यादा होता तुरन्त अधिकारी आ जाते थे। पूरी तोल कर पानी दिल्ली ब्रांच गोहाना राजबाहा, हांसी ब्रांच मौली राजबाहा एस्केप आदि ब्रांच होती थी। राजबाहे से सभी जमीदारों को पानी देना पूरा मापतोल के हिसाब से देना पंड़ित रामभज शर्मा के हाथों में किसी की पूछ नहीं रामभज शर्मा से पूछा जाना कभी भी अपनी नौकरी में किसी अधिकारी को नराज नहीं किया। एक बार दिल्ली का अधिकारी एक्स.इ.एन अचानक दौरे पर आके चैक करने लगा। जहां पर पानी नपता था वहां हैड की डेड़ किलोमिटर की दूरी पर था एक्स.इ.एन पानी देखकर आया। उसे पानी ज्यादा मिला और हैड पर आकर हेड इन्चार्ज रामभज शर्मा से पूछने लगा। पानी कितना है उसने कागज के हिसाब से बताया, वह कहने लगा नदी में 2 हिस्से पानी ज्यादा है। वह कहने लगा नहीं साहब पानी पूरा है, तब वह बाप गया और अपने बेलदार से ईशारे में कहां कि दो चक्कर कम कर दो। बेलदार संकेत समझ गया तुरन्त कार्रवाई कर दी। काफी सकय तक बाहस चलती रही। यहां तक की अधिकारी ने बोला की तुझे नहर में डाल दूगा तुने दिल्ली को डुबाने का ठेका ले रखा है। काफी समय तक बहस होती रही अधा घण्टा लग गया वहा गये जितने पानी की जरूरत थी उससे कम पानी मिला। एक्स.इ.एन का परिवार साथ तभी उसका बेटा बोला पिता जी इर्न्चाज सही है। अब बताओं कोन नहर में कूदेगा जैसा होता था। उस समय अधिकारी ने शर्म महसूस कि। कभी उस अधिकारी ने उन्हे सम्मान दिया। उनके नीचे 100 आदमी काम करते थे और वे सभी उनका मान सम्मान करते थे। पता नहीं कतने अधिकारीयों के साथ काम किया परन्तु लक्ष्मी जे.ई. व बृजभूषण शर्मा तार बाबू के साथ काफी समय तक रहे। बृज भूषण शर्मा से काफी अनुभव सीखा उसने कभी भी किसी अधिकारी को अपनी शिकायत का मोका नहीं दिया एक बार एक नहर में पानी ज्यादा आजाने के कारण नहर टूट गई वहा के अधिकारी ने इर्न्चाज की शिकायत कर उसे सस्पैंड करने का ऑर्डर कर दिया। तार भाई रामभज शर्मा ने जवाब दिया कि इसमे मेरी कोई गलती नहीं है। उसने जिस हिसाब से पानी रजिस्टर पर जे.ई से भरवाये तब सभी सबूत अधिकारी को दिखाये फिर भी उन्होंने जे.ई को सस्पैंड कर दिया। अपनी बुद्धि से काम कर मुसीबत के समय पर अपना बचाव करने की उनके अन्दर इतनी क्षमता थी। पढ़ाई कम होने के कारण कम उन्नति कर सका और हैड जमादार पर 2002 में रिटायार हो गई। मेहनत करके कस्सी चला-चला कर खेतों के बडे-बडे गड्ढे़ ठीक-ठाक कर खेत को बनाना मेरी मेहनत कर फसल उगाना गाँव की संस्कृति जैसे गाय, भैंस रखना उसका पालन कर क्रय-विक्रय करना पूरी जिन्दगी एक ही साईकिल पर बता देना घडी का पूरा शोकिन, रेडियो को सूनना हरियाणवी पूरी चाव से सूनना अखबार पढ़ना पत्रिका पढ़ना अपना शौक रखा बिडी पीना उस समय हुक्के का शौक था उसने बिड़ी पीना सीख लिया परन्तु बाद में छोड़ दिया शराब का सेवन कभी नहीं किया गाँव में सभी से मिलन सार सभी जाति के लोगों से मिलना जुलना अपना महत्व स्व० मास्टर मूल चन्द के साथ बैठ कर चाय की चूसकी लेना अगर आपस में न मिले तो मास्टर फूल चन्द अपनी दुकान छोड कर उसके पास आ जाता व हाल चाल पूछता, क्योकि एक साथ पढ़े व बाद में मास्टर के पिता ठेकेदार माहनलाल जी नहर पर रहते थे वही मस्टर जी रहते थे । पण्डित रामभज शर्मा भी वहीं नौकरी करते थे। वे दोनो इकट्ठे रहते थे । बाद में मास्टर जी गांव में आ गये । वहां अपनी दुकानदारी पर बैठ गये । वहां पण्डित रामभज शर्मा भी समय बिताने के लिये आपस में बैठकर समाज व अपने परिवार की बाते करते । मास्टर की मृत्यु 2015 में होने पर जैसे आपस में हंस की जोड़ी टुट गई । काफी जिन्दगी में धक्का लगा । भाई से बढ़कर था प्यार । जहां भी रहा वहां के लोगो को अपना बनाना उसकी अपनी पहचान थी । बचपन में मामा गांव घोघा में रहे । आज भी वहां के लोग जो उसकी उम्र के थे उसकी तारीफ करते है । दो जगह बदली हुई, वहां भी खूबड़ू झाल व इन्द्री में वहां के आस-पास के गांव के लोग जो उसके साथ रहे ! वे सभी पण्डित रामभज शर्मा की तारीफ करते है, काफी दूर-दूर साईकल पर जा कर ड्यूटी की खूबड़ू से कभी माता-पिता के पास नहर के पास साईकल पर आना जाना । रिश्तेदारी में उस समय साईकल पर लोगों का आना जाना होता था ।
दादी का नाम सिबो दादा गोविन्द राम परदादा नत्थू राम लगभग 200 वर्ष पूर्व डिंडाडू पंजाब गाँव से आये मूनक में अपनी रिश्तेदारी में रहने लगे। यहा पर रहने वाले आज भी इस परिवार को पुजनीय मानते है। बडे-बुर्जुग कहते थे कि जब हम यहाँ से जाने लगे तो उस का देवता नाम बन कर गाड़ी के आगे आ गये। जिधर गाड़ी मे जोते बैल को मोड़ते वो उधर ही आगे आ जाता था उसके बाद फिर उनमें से जो छोडने के लिये जा रहे थे उन्होंने उसे जान वापस ले आये तब से आज तक यहां मूनक में निवास करने लगे। वहा कि जमीन भी देकर कुछ न तो लेली परन्तु किसी कारण वश जमीन नहीं ली गई। पिता पर कई जिम्मेदारी थी जो इस तरफ ध्यान न देकर परिवार के पालन-पोषन व मेहनत मे लगे रहे। सीधा सा सुन्दर सढ़ौल शरीर का सीताराम अपने कार्य से कार्य रखना उसका अपना दिन चर्या कार्य करना उसका जैसा जिन्दगी का उद्देश्य था। माता छोटी देवी जो बहुत शरीफ महिला थी। सभी उस समय अलग-अलग मुहल्ले होते थे। मुहल्ले में प्रेम से रहना उनका अपनी दिनचर्या में था।
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