आदमी की
फ़ितरत मतलबी
अतिपरिचयात
भवति अवज्ञा
पहले ऊँगली
पकड़ेगा फिर
कंधे पर बैठेगा
आदमी की
फ़ितरत अजीब है
पहले आप बोलेगा
फिर तुम बोलेगा
फिर सीधे से
तू पर उत्तरेगा
मैंने भी देखा है
तुमने भी झेला होगा
मर्यादाएँ लाँघते लोगो को
पहले अपना बनाते है
फिर अपना बनते है
दिखावे कै पैरी पौना
लम्बे लम्बे लेट प्रणाम
आदमी तो आदमी
भगवान के
सामने भी नौटंकी
जारी है
चीख रहे है
चिल्ला रहे
दर्शन के लिए
शॉर्टकट चाह रहे है
जैसे भगवान को
कुछ पता ही नही है
काम पड़ा आपसे
लम्बे पड़ गये
काम ख़त्म
आप कौन
ये आदमी की
कैसी फ़ितरत है
सोचता हूँ
इमदाद करूँ
पर क्यों करूँ
पिछले दो दशकों में
कितने स्वार्थी
दोस्तों चेलों से
बमुश्किल मुक्ति
अब डर लगता है
किसी को क़रीब
लाने से
किसी के क़रीब
जाने से
जिसे मारा
अपनो ने मारा
जिसने मारा
अपना बनकर
मारा
इसलिए
विष अच्छा है
विश्वास नही
पर फिर सोचता हूँ
विश्वाशम फलदायकम
क्यों सोचता हूँ ?
मतिभ्रम है
या मेरा परारब्ध !
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