परिचर्चा--
ऑक्सीजन, जल एवं भोजन, तीन ऐसे तत्व हैं जिनके बिना इस धरती परहम जीवित नहीं रह सकते।
ऑक्सीजन, जल एवं भोजन, तीन ऐसे तत्व हैं जिनके बिना इस धरती पर हम जीवित नहीं रह सकते। लेकिन इन सबमें ऑक्सीजन सबसे ज्यादा जरूरी है और फिर जल एवं भोजन, क्योंकि ऑक्सीजन के बिना हम एक सेकेंड भी नही जी सकते। स्वच्छ जल भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि हमें अपनी दैनिक गतिविधियों को पूरा करने में और खासकर पीने के लिए इसकी जरूरत पड़ती है। पहले से ही स्वच्छ जल का प्रतिशत कम था लेकिन औद्योगिक गतिविधियों की वजह से जमीन के नीचे का स्वच्छ जल भी गंदा एवं प्रदूषित होता जा रहा है। ताजे मिनरल वाटर की
बढ़ती हुई कमी की वजह से कई वर्षों से स्थानीय दुकानों पर इसकी बिक्री
शुरू हो चुकी है और लोग इसे 30 से 35 रू में भी खरीदने को तैयार रहते हैं
क्योंकि उन्हें पता है कि साधारण नल का जल खासकर वे जो सार्वजनिक स्थानों पर उपलब्ध होते हैं ज्यादातर स्वच्छ नहीं होते। जल बचाने एवं उसकी सुरक्षा को लेकर लोगों की बढ़ती हुई लापरवाही और विकराल होती जनसंख्या की वजह से निश्चय ही भावी पीढ़ी को स्वच्छ जल की कमी की समस्या से जूझना पड़ेगा। इस धरती पर उपलब्ध जल का बहुत कम प्रतिशत ही पीने योग्य है और जल की कमी वाले स्थानों पर रहने वाले लोगों को प्रति दिन बहुत कम जल का इस्तेमाल करते हुए जीवित रहना पड़ता है। इसको लेकर हमारे मुख्य सम्पादक व वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण कौशिक ने इस विषय पर लोगों से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के अंश:-
एडवोकेट ऋषिपाल राणा का कहना है कि-
जल बचत की तकनीक समाज, समुदायों, व्यापार वर्गों सहित गांवों में रहने वाले लोगों के बीच प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि ये ही बेहिसाब तरीके से जल का इस्तेमाल करते हैं। किसानों, बच्चों एवं महिलाओं को जल का उपयोग कुशल तरीके से कैसे करें इस बारे में ठीक से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उन्हें अपने जीवन में जल का महत्व समझना होगा। स्वच्छ जल की कमी सिर्फ किसी एक देश की समस्या नहीं है बल्कि यह पूरे विश्व की समस्या है जिसे वैश्विक स्तर पर लोगों के बीच जागरूकता फैला कर हल किए जाने की आवश्यकता है।
सुशील कौशिक ने कहा कि -
हम कई साधारण उपाय अपनाकर रोजाना कई गैलन जल बचा सकते हैं। इसके लिए हमें कम बहाव वाले बाथरूम शावर , कम पानी फ्लश करने वाले शौचालयों एवं खाद बनाने वाले शौचालयों या दो विकल्पों वाले फ्लश से युक्त शौचालयों का प्रयोग करें। हाथ धोते वक्त, दांत साफ करते वक्त, चेहरा धोते हुए या बर्तन धोते हुए अनावश्यक चल रहे नल को बंद रखना चाहिये।
पवन अग्रवाल अध्यापक का कहना है कि
बरसात के मौसम में बारिश के जल को जमा करें और टॉयलेट फ्लश, पौधो को जल देते वक्त या बगीचे में जल देते वक्त इस जल का इस्तेमाल करें। अपरिष्कृत जल जैसे कि समुद्री जल या बिना साफ किए हुए जल का इस्तेमाल टॉयलेट में
करना भी एक अच्छा विकल्प है। हमें खराब जल का पुनर्चक्रण कर दोबारा इस्तेमाल करने की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए।
राजपाल प्रेमी सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा--
हमें जल संरक्षण के लिए वर्षा जल संग्रहण, उच्च क्षमता वाले कपड़े धोने की मशीनों का इस्तेमाल, मौसम पर आधारित सिंचाई नियंत्रक, बगीचे के नली नलिका एवं हाथ धोने के बेसिन में कम प्रवाह वाले नलों के इस्तेमाल के साथ स्विमिंग पूल कवर, स्वचालित नल इत्यादि के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए।
प्रशान्त कौशिक का कहना है कि --
जल बचाने के तकनीकों को व्यावसायिक क्षेत्रों में भी प्राथमिकता से
अपनाया जाना चाहिए क्योंकि ऐसी जगहों पर दैनिक रूप से कई गैलन जल बचाया जा सकता है। व्यावसायिक स्थानों में निर्जल मूत्रालयों, निर्जल धुलाई करने वाले कार वॉश, इन्फ्रारेड या पैर द्वारा संचालित नलों, दबाव द्वारा संचालित झाड़ू, कूलिंग टॉवर कंडक्टिविटी नियंत्रक, वॉटर-सेविंग स्टीम स्टरलाईजर्स, वर्षा जल संग्रहण, वॉटर टू वॉटर हीट एक्स्चेंजरों, इत्यादि का इस्तेमाल करना चाहिए।
मन्जीत शर्मा उचाना ने कहा कि -
कृषि क्षेत्र भी बेहद विशाल है जहां यदि जल बचाने की तकनीकों का इस्तेमाल किया जाए तो हम दैनिक रूप से और अधिक जल बचा सकते हैं। फसलों की सिंचाई के लिए हम ओवरहेड इरिगेशन, कम से कम वाष्पीकरण, रनऑफ या उपसतह जलनिकासी
इत्यादि का इस्तेमाल कर सकते हैं। हरित खाद का प्रयोग, फसल के अवशेष का पुनर्चक्रण, पलवार, पशु खाद इत्यादि का खेत में इस्तेमाल के द्वारा मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को बढ़ाता है जिससे मिट्टी में जल धारण करने एवं जल अवशोषित करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
नाथी राणा उचाना का कहना रहा कि --
जल संरक्षण के तकनीकों को म्युनिसिपल वॉटर युटिलिटीज या क्षेत्रीय
सरकारों द्वारा एक समान रणनीति आम रणनीतियों जैसे सार्वजनिक आउटरीच कैंपेन जैसे कि जल के अधिक इस्तेमाल के लिए अधिक मूल्य चुकाना, बाहरी गतिविधियों जैसे फ्लोर क्लीनिंग, कार वॉशिंग इत्यादि के लिए स्वच्छ जल के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना।
बिजेन्द्र मित्तल ने कहा कि --
बिजली के मीटरों के समान ही हर घर में जलापूर्ति के लिए भी यूनिवर्सल मीटरों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यह सुविधा सिर्फ ग्रेट ब्रिटेन के रिहाईशी क्षेत्रों एवं कनाडा के शहरी घरों में ही उपलब्ध है। अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण संस्था के अनुमान के मुताबिक जलापूर्ति के लिए मीटर लगाना एक ऐसी प्रभावी तकनीक है जिससे द्वारा दैनिक जल के खपत में 20 से 40 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है।
नवीन धीमान अध्यापक ने कहा कि --
जल के कम खपत से उपजने वाले फसल, अर्थात ऐसे फसल जिन्हें कम सिंचाई की जरूरत होती है, के विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, क्योंकि मात्र सिंचाई कार्य में ही दुनिया में उपलब्ध स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत खर्च हो जाता है।
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