अभिषेक की कलम से.....
महिला
दिवस मनाऐ
महिला
शसक्तिकरण
पर आओ
घड़ियाली
आँसू बहाऐं
मर चुकी
आँखो की
शर्म को
फिर छिपाएँ
पर्दे के पीछे
छुपे घड़ियाल
आज फिर
अपना दोहरा
चरित्र लिए
सामने आऐंगे
महिला दिवस
मनाऐंगे
आरक्षण और
संरक्षण के
बड़े बड़े
दावे होंगे
सब निर्भया
और निर्भया
चीखेंगे चिल्लायेंगे
आज फिर नारे
लगाएँगे
यत्र नारियस्तु पूजयन्ते
रमन्ते तत्र देवता का
जयघोष होगा
होगा हाँ
उदघोष होगा
स्त्री चरित्रम
पुरूषस्य भागम
देवों न जानासी
कुतो मनुष्य
की नयी परिभाषाऐं
लिक्खी जाऐंगी
लिंगभेद की
पाशविक
चाह मे
कहीं कोई
अजन्मी
आज भी
मारी जाऐगी
नारी
शसक्तिकरण की
आज एक नई
इबारत
लिक्खी जाऐगी
एकतरफ़ा
क़ानूनों की
वकालत होगी
समानता की
बात करते करते
कई चँडूखाने
अपरिपक्वता का
परिचय देंगे
खाई और चौड़ी
करने की
वकालत करेंगे
और खाई फिर
पैदा की जाएगी
सँरक्षण का मुद्दा
नेपथ्य मे
चला जाएगा
आरक्षण आरक्षण
की बेईमानी चीँखो
के बीच संरक्षण
की बैशाखी
तोड़ी जाएगी
महिला
शसक्तिकरण की
नई इबारत
लिक्खी जाएगी
सभ्यता और
सँस्कृति की
दुहाई दी जाएगी
जिंस और टाँप की
साड़ी और ब्लाउज़ की
बेहूदा बहस
कराई जाएगी
मर्यादाओं के
नाम पर
मानसिकताओ का
द्वन्द होगा
आज महिला
दिवस होगा ?
माँ बहू बेटी सास
किरदार बदलते ही
महिला के रूप
बदलते जाएँगे
हमारे समाज मे
क्या कभी
सास और बहू
पर गीत लिक्खे जाएँगे
सास अपनी बेटी
के गीत गाती है
कहती है बेटियाँ
मयालु होती है
बहू अपनी माँ के
गीत गाती है
कहती है
माँ तो मयालु
होती है !
इन सबके बीच
सास बहू की
अनबुझ पहेली
भी सुलझाए !
आओ सास और
बहू पर गीत बनाए
महिला दिवस मनाऐ !
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