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Thursday, 3 March 2022

यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के अभिभावकों की उड़ी रातों की नींद

 घर वापिसी की जद्दोजहद में छात्र, घरौंडा क्षेत्र के सात छात्र यूक्रेन में फंसे, अभिभावकों ने सरकार से लगाई फ्लाइटों की संख्या बढ़ाने की गुहारघरौंडा: प्रवीण कौशिक
यूके्रन में रूस की बमबारी के बीच यूक्रेन के विभिन्न शहरों में फंसे हजारों भारतीय छात्र जहां घर वापिसी की जद्दोजहद में लगे हुए है, वहीं छात्रों के अभिभावकों की रातों की नींद और दिन चैन उड़ा हुआ है। घरौंडा शहर व आसपास के गांवों से छह छात्र यूक्रेन में फंसे हुए है। छात्रों के अभिभावक सरकार के प्रयासों को नाकाफी बता रहे है। अम्बेसी से भी सहयोग ना मिलने के आरोप लगाए जा रहे है। अभिभावकों की माने तो उनके जिगर के टुकड़ों को माइनेस पांच डिग्री तापमान भूखे-प्यासे कई-कई किलोमीटर तक चलना पड़ रहा है। ना खाने को है और ना ही पीने को। अभिभावकों का कहना है कि जिस स्पीड से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है उससे अनुसार तो उनके बच्चों को वापिस आने क्या पता कितने दिन लग जाएगें।
डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए अभिभावकों ने लाखों रुपए खर्च कर यूक्रेन भेजा, लेकिन रूस के हमले ने यूक्रेन में खलबली मचा दी। डर के साय में यूक्रेन में फंसे छात्र बॉर्डरों तक पहुंचने की कोशिश में लगे हुए है। भारत सरकार ने भी ऑपरेशन गंगा शुरू किया हुआ है। जिसके बाद छात्रों में उम्मीद जगी है कि वे सकुशल घर तक पहुंच जाएंगें। घरौंडा शहर से चार और पुंडरी, डिंगर माजरा व बरसत गांव से एक-एक छात्र यूके्रन में फंसा हुआ है।
कौन-सा छात्र कहां पर है फंसा-
घरौंडा की धर्मबीर कालोनी में रहने वाला स्पर्श पुत्र सुरेंद्र यूक्रेन के बुडापेस्ट एयरपोर्ट पर है, जबकि धर्मबीर कालोनी की तिशा काजल पुत्री प्रमाल सिंह पोलेंड में है। वहीं वार्ड-14 की रिधी शर्मा पुत्री सुदर्शन शर्मा रोमानिया बॉर्डर पर है। घरौंडा के अराईपुरा रोड का रहने वाला विशाल पुत्र राजेंद्र बुडापेस्ट में है। पुंडरी गांव का शुभम पुत्र पवन कुमार रोमानिया बॉर्डर पर है। बरसत गांव का गौरव पुत्र ऋषिपाल हंगरी बॉर्डर पर और डिंगर माजरा का योगेश पुत्र विनोद कुमार रोमानिया बॉर्डर पर फंसा हुआ है। सभी छात्रों के अभिभावक अपने बच्चों के सकुशल लौटने की कामना कर रहे है।
जितना सहयोग मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला-रिद्दी शर्मा के अभिभावक सुदर्शन शर्मा व रेखा शर्मा का कहना है कि सरकार की तरफ से जितना सहयोग मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला। जिन लोगों के माध्यम से रिद्दी को भेजा गया था उन्हीं ने किसी तरह से बॉर्डर तक पहुंचाया, लेकिन उसके बाद तीन दिन तक उनकी बच्ची तीन दिन तक भूखी प्यासी रही। नाईजीरिया के विद्यार्थियों ने भी उनकी बच्ची के साथ बुरा व्यवहार किया। एंबेसी फोन तक नहीं उठा रही। तीन दिन तक हमे भी नहीं पता था कि हमारी बच्ची कहां है और किस हालत में है। जब से गोलीबारी में एक युवक की मौत हुई है उसके बाद उनकी चिंता ओर भी बढ़ गई है। सरकार फ्लाईटों की संख्या बढ़ाए और जल्द से जल्द उनके बच्चों को वापिस लेकर आए।हमारी रातों की नींद उड़ी हुई है-
विशाल के पिता राजेंद्र सिंह व माता मीनू का कहना है कि जिसका बच्चा युद्ध क्षेत्र में फंसा हुआ हो, उनके दिलों पर क्या बीत रही है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। यूक्रेन में छात्र की मौत के बाद तो दहशत ओर भी ज्यादा बढ़ गई है। उनके बच्चें को कभी बंकर में छिपना पढ़ रहा है तो कभी कहीं ओर शरण लेनी पड़ रही है। उन्होंने बताया कि प्रशासनिक अधिकारी उनके पास सिर्फ डिटेल लेने के लिए पहुंच रहे है और डिटेल लेकर चले जा रहे है। लेकिन उनका बच्चा कब तक आएगा इसका कोई अंदाजा नहीं है। अभी उनका बच्चा बुडापेस्ट एयरपोर्ट पर है और उसको थोड़ी बहुत हेल्प ही मिल पा रही है। सरकार जल्द से जल्द सभी भारतीयों को वहां से निकाले।

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