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Monday, 7 March 2022

संघ के नींव के पत्थर प्रोफेसर दामोदर वाशिष्ठ*

पुण्य तिथि पर विशेष                    *प्रस्तुति:डॉ प्रवीण कौशिक*
साल 1956 की एक तपती दोपहरी में ब्रज क्षेत्र आये उत्साह से लबरेज ,बलिष्ठ शरीर के स्वामी,गौरवर्णीय,25 वर्षीय तेजस्वी युवक ने जब महाभारत की धरती पर कदम रखा तो उसे नहीं पता था कि अगली आधी सदी से भी ज्यादा समय तक इस माटी के साथ उसका माँ - बेटे का रागात्मक सम्बन्ध जुड़ने वाला है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह तृतीय वर्ष शिक्षित स्वयंसेवक संघ कार्य के लिए एक जेलयात्रा पूरी कर चुका था और उसे नहीं पता था कि आने वाले वर्षों  में इस ईश्वरीय कार्य के लिए अभी एक बार फिर उसे जेल जाना है। यह गाथा है हरियाणा में संघ कार्य मे नींव का पत्थर बने एक अदभुत शिक्षक और कुशल संगठनकर्ता प्रोफेसर दामोदर वाशिष्ठ की जिन्होंने अपनी कुशलता से अपने जैसे ही  सैकड़ों सक्रिय कार्यकर्ताओं को तैयार करने में सफलता प्राप्त की।
हरियाणा में पहली संघ शाखा 1937 में शाहाबाद मारकंडा में शुरू हुई। 1935-36 में वसंतराव ओक ने दिल्ली में संघ कार्य का शुभारंभ किया। संघ कार्य भी दिल्ली से सटे क्षेत्रों में फैलता गया। करनाल के वैद्य रतिराम दिल्ली में स्वयंसेवक बने। नंद किशोर जी व सुशील जी ने लाहौर में संघ शिक्षा वर्ग में प्रशिक्षण प्राप्त कर 1937 में शाहाबाद मारकंडा में शाखा शुरू कीं। हरियाणा जो उस समय पंजाब प्रांत का एक हिस्सा था, में पहली शाखा शुरू होने का श्रेय शाहाबाद को जाता है। फिर रोहतक और हिसार तक संघ पहुंच गया।
1937 से 1947 संघ के स्वयंसेवकों के शौर्य और पुरुषार्थ का कालखंड रहा। कर्त्तव्यनिष्ठ स्वयंसेवक अपने स्वजातीय बंधुओं की रक्षा में शुरू से सजग रक्षक की तरह खड़े रहे। इसी काल में संघ का कार्य शहर और उससे सटे गांवों में शीघ्र विस्तार लेता गया। जनवरी 1948 में अचानक गांधी जी की हत्या हो गयी और कांग्रेस ने हत्या का झूठा आरोप संघ पर लगा संगठन को प्रतिबंधित कर दिया। हिंदू समाज पर भी इसका असर हुआ और इस मिथ्या दुष्प्रचार में आकर वह संघ विरोधी बन गया। संघ के स्वयंसेवकों ने असत्य का प्रतिरोध सत्याग्रह के द्वारा किया। फिर हरियाणा में 1949 से 1977 तक संघ कार्य में निरंतरता रही परंतु विकास की गति धीमी रही, पर संघ के कार्यक्षेत्र निष्ठा, धैर्य और परिश्रम से कार्य का विस्तार देने में सफल होते गए और आज हरियाणा में संघ की शाखाएं 1000 से भी ज्यादा स्थानों पर पूरे उत्साह के साथ लगती दिखाई देती हैं। इसके साथ ही समाज जीवन के हर क्षेत्र में उसका प्रभाव तथा स्वीकार्यता बढ़ी है।
ऐसे में उन निष्ठावान स्वंसेवकों को भी याद कर पुण्य स्मरण भी होता है जिनके परिक्षम और लगन से संघ हरियाणा में आज इस स्तर तक पहुंचा। इन नींव के पत्थरों में से एक थे कैथल के प्रोफेसर दामोदर वाशिष्ठ। 1956 से मृत्युपरंत 2009 तक हरियाणा में संघ के विभिन्न दायित्व निभाते हुए उन्होंने पुराने करनाल जिले, जिसकमें आज के करनाल, पानीपत, कुरुक्षेत्र और कैथल जिले शामिल हैं, में संघ कार्य को जमाने और उसे प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
उनका जन्म 15 जुलाई 1930 को आगरा जिले के ताहरपुर गांव में किसान परिवार में हुआ। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर देशभर में लगे प्रतिबंध के दौरान 17 साल की उम्र में आगरा में सत्याग्रह कर जेल जाने वाले दामोदर जी संघ का तृतीय वर्ष करने के पश्चात 1956 में कैथल के प्रतिष्ठित आरकेएसडी कॉलेज में हिंदी, संस्कृत के प्राध्यापक बनकर पहुंचे। अपने आकर्षक व्यक्तित्व, व्यवहार कुशलता और उत्साही स्वभाव से वे शीघ्र ही पूरे इलाके में लोकप्रिय हो गये और उनके महत्व से कस्बों, ग्रामीण क्षेत्रों में संघ का कार्य घर-घर पहुंचने लगा।
1962 में चीन से युद्ध, 1965 और 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान संघ के स्वयंसेवकों को इकट्ठा कर गली-गली में ब्लैकआउट लागू करवाने और पहरा देते हुए प्रशासन की सहायता में समाज को खड़ा कर उन्होंने एक कुशल संगठन के रूप में खुद को स्थापित किया। साठ के दशक में ही संघ के द्वितीय सरसंघचालक परम पूजनीय गोलवलकर जी का भी कैथल में आगमन हुआ और नगर में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया।तृतीय सर संघचालक परम पूजनीय बाला साहब देवरस के कैथल प्रवास में भी भव्य कार्यक्रम उनके नेतृत्व में आयोजित हुए। 1975 तक जब पूरे हरियाणा में लगभग सौ के करीब संघ की शाखाएं हुआ करती थीं, तब अकेली कैथल तहसील में 30 से 35 तक संघ की शाखाएं थीं। उस दौरान उनके पास तहसील कार्यवाह, जिला कार्यवाह जैसे दायित्व थे। प्रोफेसर दामोदर जी वाशिष्ठ जो तब तक पूरे इलाके में गुरुजी के नाम से विख्यात हो चुके थे, ने क्षेत्र में सैकड़ों निष्ठावान कर्यकर्ता शहरों, कस्बों और गांव-गांव में खड़े कर दिए। उनके साथ उस समय कैथल के आरकेएसडी कॉलेज में इतिहास के प्राध्यापक सतीश चंद्र मित्तल तथा अर्थशास्त्र के प्राध्यापक मोहनलाल ग्रोवर भी अत्यंत सक्रिय थे। प्रोफेसर सतीश चंद्र मित्तल बाद में इतिहास संकलन समिति के राष्ट्रीय प्रमुख बने तथा अयोध्या को श्रीराम मंदिर पर अदालत में चले केस के ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को संजोने और पेश करने उनका महत्वपूर्ण योगदान हमेशा याद रहेगा।
इन तीन प्राध्यापकों की त्रयी के साथ-साथ कॉलेज में ही लाइब्रेरियन ज्ञानचंद, संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेशजी के पिताजी चमनलाल सर्राफ और व्यवसायी रघुनाथ गोयल की टीम ने कैथल क्षेत्र में संघ के सुदृढ आधार को तैयार किया। चमनलाल सर्राफ और रघुनाथ गोयल बाद में विधायक भी बने।
1975 में तत्कालीन तानाशाह प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा देशभर में लगाये गये आपातकाल के विरोध में हरियाणा से भी सैकड़ों कार्यकर्ता जेल गये। इनमें स्वाभाविक तौर पर प्रोफेसर दामोदर जी के साथ-साथ यह टीम भी कई महीने तक करनाल जेल में बंद रही। दामोदरजी की यह तीसरी जेल यात्रा थी। वह 70 के दशक में शिक्षक आंदोलन के चलते भी कुछ दिन के लिए हवालात में रह चुके थे।
अत्यंत उत्साही, सक्रिय और गतिशील प्रोफेसर साहिब अकसर कॉलेज से घर पहुंचने के बाद खाना खाकर संघ द्वारा दी गयी राजदूत मोटरसाइकिल पर किसी गांव में पहुंच जाते थे और वहां कॉलेज के मित्र भी उनकी प्रतीक्षा कर रहे होते थे। फिर शुरू होता था गांव के प्रमुख लोगों से सम्पर्क और गांव में नयी शाखा प्रारंभ करने का सिलसिला या फिर पुरानी शाखा को और मजबूत करने की प्रक्रिया। इस तरह संघ का प्रभाव पूरे क्षेत्र में तथा समाज के हर वर्ग में पहुंचा। वह क्षेत्र में चलने वाली लगभग सभी सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक तथा बौद्धिक गतिविधियों में सक्रिय रहते थे। संघ की जिम्मेदारी के साथ-साथ हरियाणा कॉलेज टीचर्स यूनियन के अध्यक्ष, कैथल आर्य समाज के अध्यक्ष होने के अलावा तत्कालीन राजनीतिक गतिविधियों में भी उनकी भागीदारी रहती थी। और मूल कार्य संघ की शाखा का अलग यह बनी कैथल के क्योड़क और पाई जैसे गांवों में शाखा में स्वयंसेवकों की उपस्थिति कई बार सैकड़ों में रहती थी। क्योड़क में भी भीखमसिंह जी और पाई में पंडित ओमप्रकाश जी संघ के पर्याय बन चुके थे और दोनों ही उनके अभिन्न मित्र भी थे।
उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया जब 1989 में एक्सीडेंट के बाद पीजीआई चंडीगढ़ में इलाज के दौरान उनकी गर्दन में कैंसर का पता चला। लगभग 2 साल के इलाज के दौरान कैंसर को उन्होंने मात दे दी। इसी बीच कॉलेज से उनका रिटायरमेंट हो चुका तो वह घर छोड़कर रोहतक में संघ कार्यालय चले गये और एक वर्ष के रोहतक प्रवास में उन्होंने संघ की योजना से एक पुस्तक 'भारत अखंडता की ओर' भी लिखी। यह उनकी तीसरी पुस्तक थी। वापस लौटने के बाद इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय प्रमुख ठाकुर राम सिंह जी ने उन्हें हरियाणा इकाई के महामंत्री का पद सौंप प्रांत पर इतिहास लेखन की जिम्मेदारी सौंपी।
हरियाणा के वैदिक कालीन इतिहास पर उन्होंने स्वयं कार्य करते हुए इतिहास संकलन योजना के माध्यम से पूरे प्रदेश के इतिहास लेखन को एक नयी राह दी तब संगठन को एक मजबूत आधार प्रदान कर जगह-जगह इतिहास लेखकों को सक्रिय टोलियां खड़ी कर दी। कैथल जिले की वेबसाइट तैयार करते समय प्रोफेसर दामोदर वाशिष्ठ ने सरस्वती नदी के तट पर बसे इस क्षेत्र का अध्ययन राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से किया। हरियाणा के ग्रामीण जनजीवन में अभी भी उन्हें वैदिक काल के ऋषियों के आश्रमों के पवित्र वातावरण, वेद ग्रंथों के पठन-पाठन की संस्कार परंपरा का अनुभव होता रहा, हालांकि आज हमारे गांवों का वातावरण काफी कुछ बदल चुका है, परंतु वह अब भी उसी वैदिकालीन माहौल का अनुभव करते थे।
हरियाणा के सांस्कृतिक इतिहास, उसकी माटी के कण-कण में व्याप्त बोलियों और मूल्यों को एक नया अर्थ और आयाम प्रदान कर उन्होंने माटी के पुत्र का फर्ज निभाया। यह संघ का ही संस्कार और दृष्टि थी कि हरियाणा का जर्रा-जर्रा उनके लिए केवल एक भूषण का अंश भर नहीं था अपितु एक जीवंत पुस्तक की तरह था और अत्यंत आत्मीयता के साथ वह इस पुस्तक के पन्ने पलट रहे थे। दूसरे शब्दों में कहें तो यह संबंध माता और पुत्र के पवित्र संबंध जैसा भी था।
इतिहास संकलन योजना के महामंत्री के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने लोक साहित्य की रामकथा की लुप्त पोथियों को खोजने के लिए भी गरमी और खराब मौसम में हरियाणा के गांव-गांव पैदल घूमने में भी कष्ट का अनुभव नहीं किया। इस दौरान उन्होंने पूंडरी के लाला देवतरण कृत 'रामनाटक'और सीवन के पंडित "शादीराम की ग्रंथावली 'को खोज निकाला। बाद में इन दोनों पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शोध हुए और पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं। 7 मार्च 2009 को देहावसान से एक माह पूर्व वह पंडित शादीराम ग्रंथावली का संपादित संस्करण प्रकाशित करवाने में वह सफल रहे।
संघ के संस्कारों और आदर्शों के अनुरूप एक भरपूर जीवन कैसे जिया जा सकता है यह उन्होंने अपने स्वयं के जीवन से सिद्ध करके दिखाया।
प्रोफेसर दामोदर वाशिष्ठ के संपूर्ण जीवन और दर्शन को देखते हुए अनुभव होता है कि वैदिक कालीन कोई ऋषि भटकता हुआ सायास हमारे बीच आ गया और अपने जीवन का उद्देश्य पूर्ण कर फिर उसी ब्रह्म में विलीन हो गया।
*हरेश वाशिष्ठ*
लेखक ट्रिब्यून समाचार पत्र समूह चंडीगढ़ में लंबे समय तक समाचार सम्पादक रहे हैं।

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