घरौंडा, प्रवीण कौशिक
भारत की आजादी के आंदोलन में ऐसे अनेक क्रांतिकारी हुए, जिन्होंने मुल्क को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जिन्होंने अपना सब कुछ देश की आजादी के लिए दांव पर लगा दिया। आईए उनकी 125वीं जन्म जयंती पर जानते है उनके व्यक्तित्व एवं योगदान के बारे में।
असीम साहस, अनूठी संकल्प शक्ति: नेता जी सुभाष सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि आजादी हमारा अधिकार है। उन्होंने कहा था कि आजादी मांगी नहीं जाती, आजादी छीनी जाती है। 1921 में नेता जी सुभाष सुभाष चंद्र बोस प्रशासनिक सेवा की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। नेता जी के उग्र विचारों के कारण देश कई लाखों युवाओं का उनको समर्थन मिला। उनके अन्दर असीम सासह और अनूठी संकल्प शक्ति का अनंत प्रवाह विद्यमान था। उनके जीवन पर स्वामी विवेकानंद का बहुत प्रभाव था।
गाँधीजी से असहमति: 20 जुलाई 1921 को उनकी मुलाकात राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भी हुई, गांधीजी के कहने पर नेताजी ने असहयोग आंदोलन में बड़े गर्मजोशी से भाग लिया। फिर उन्होंने देशबंधु चितरंजन दास के साथ मिलकर बंगाल आन्दोलन का नेतृत्व किया। नेताजी हमेशा मानते थे कि मात्र अहिंसा के दम पर कभी देश को आजाद नही करवाया जा सकता, इसीलिए गांधीजी से उनकी असहमति हमेशा बनी रहती थी।
भगत सिंह की फांसी की सजा ना रुकवा पाने के कारण सुभाष गाँधीजी से नाराज थे। 1938 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनना गाँधीजी को पसंद नही आया तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
# अंग्रेजो के लिए बड़ा खतरा : महान देशभक्त और कुशल नेता सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजों के लिए सबसे खतरनाक व्यक्ति थे। ब्रिटिश सरकार सुभाष बोस को हथकड़ियां पहनाने के बहाने खोजती थी, वह किसी भी कीमत पर उन्हें आजाद नहीं छोड़ना चाहती थी। उनकी गतिविधियों ने ना सिर्फ अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए वरन देश छोड़ कर जाने पर मजबूर कर दिया।
# आजाद हिंद फौज की स्थापना: नेता जी का मानना था कि भारत से अंग्रेजी हुक़ूमत खत्म करने के लिए सशस्त्र बिद्रोह ही एकमात्र रास्ता हो सकता है अतः
उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपनी एक अलग फौज भी ख़डी की थी जिसे उन्होंने नाम दिया था 'आजाद हिन्द फौज'। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने सशस्त्र क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को ‘आजाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की, इस संगठन के प्रतीक चिह्न एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। यह फ़ौज उन्होंने जापान की सहायता से खड़ी की थी। अपनी यूरोप यात्रा के दौरान वो हिटलर से भी मिले थे, जर्मनी में हिटलर के नाजीवाद और इटली में मुसोलोनी के फासीवाद के विरुद्ध अंग्रजी ताकत खड़ी थी और नेता जी मानते थे कि दुश्मन का दुश्मन एक मित्र होता है,इसलिए नेताजी हिटलर की मदद से भरी को आजाद करवाना चाहते थे।
# क्रांतिकारी नारो का आगाज़: तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा”, “दिल्ली चलो” और “जय हिन्द“ जैसे नारों से सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नई जान फूंकी थी। उनके जोशीले नारे ने सारे भारत को एकता के सूत्र में बांधने का काम किया। ये कुछ ऐसे नारे हैं जो आज भी राष्ट्रीय महत्व के अवसरों पर हमें याद दिलाता रहता है कि हम एक हैं। देश में क्रांतिकारी नारों के आगाज़ वाले तथा ललकार के साथ अंग्रेजी हुकूमत का डटकर सामना करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी वीरों में बड़े सम्मान व श्रद्धा के साथ लिया जाता है। अत्यंत निडरता से सशस्त्र उपायों द्वारा सुभाष चंद्र बोस ने जिस प्रकार अंग्रेजों का मुकाबला किया उसके जैसा अन्य कोई उदाहरण नहीं मिलता है, तभी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का पूरा जीवन आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।
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